60 साल में 3641 शो, बोल्शेविक क्रांति के बाद समाजवाद का उदाहरण बना यह नाटक - Web India Live

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60 साल में 3641 शो, बोल्शेविक क्रांति के बाद समाजवाद का उदाहरण बना यह नाटक

भोपाल। शहीद भवन में नाटक 'गरीबी गुनाह नहीं' का मंचन हुआ। यह नाटक 1853 में अलेक्सान्द्र ओस्त्रोव्स्की ने लिखा थी। नाटक के 1857 से 1917 तक 3641 शो रुस के रंगमंच पर हुए। सोवियत संघ सत्ता के दौरान यह नाटक काफी लोकप्रिय हुआ। तीन एक्ट के इस नाटक का सुखद अंत होता है। डायरेक्टर का कहना है कि भोपाल में इसका यह पहला शो है।

इतने लंबे समय बाद भी यह नाटक प्रासंगिक है। यह नाटक हर देश, काल और समय में मौजूं बना हुआ है। क्योंकि समाज में उच्च और निम्न वर्ग का भेद हमेशा कायम है। एक घंटे 45 मिनट के इस नाटक में 15 कलाकारों ने अभिनय किया है। नाटक के माध्यम से यह मैसेज देने की कोशिश की गई है कि उपभोक्तावाद से संस्कृतियों पर खतरा बढ़ रहा है।

ये है स्टोरी

नाटक की कहानी एक प्रेमी जोड़े की है। गोर्देई कार्पिच एक अमीर आदमी है। घर में चल रहे त्योहारों को परंपरागत तरीके से मनाए जाने को वह दकियानूसी करार देता है। वह अमीरता से इतना प्रभावित है कि उसे आसपास कोई ऐसा लड़का दिखाई ही नहीं देता।

जिससे वह अपनी लड़की की शादी कर सके। तब एक अमीर बूढ़ा अफ्रीकान साविच जो अंग्रेजी तौर-तरीके अपनाए हुए है, उससे प्रभावित होकर बेटी की शादी उससे तय कर देता है। पूरा घर इस बात का विरोध करता है। गोर्देई कार्पिच की लड़की ल्यूबा अपने पिताजी के ऑफिस में काम करने वाले एक गरीब लड़के मीत्या से प्यार करती है।

मीत्या एक पढ़ा लिखा और समझदार लड़का है। ल्यूबा पिताजी द्वारा तय किए गए इस रिश्ते से खुश नहीं है फिर भी अपने प्रेमी मीत्या द्वारा घर से भाग चलने के प्रस्ताव को ठुकरा देती है। इससे उसे पिता की बदनामी हो सकती है। गोर्देई चुपके से यह सारी बातें सुन लेता है और अंत में गरीबी गुनाह नहीं यह कहते हुए गरीब मीत्या से शादी करने को राजी हो जाता है।

रूसी म्यूजिक और कॉस्ट्यूम का यूज
डायरेक्टर दिनेश नायर का कहना है कि रूस में 1917 में बोल्शेविक क्रांति हुई थी। जार शासन खत्म होने के बाद यह नाटक वहां समाजवाद और समानता के अधिकार का प्रतिक बनकर सामने आया। नाटक में कंटपरेरी म्यूजिक का यूज किया गया।

रिकॉर्डेड म्यूजिक को रशियन और इंडियन टच दिया है। नाटक में रशियन कॉस्ट्यूम का यूज किया गया। डायरेक्टर का कहना है कि आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी भाषा और संस्कृति को खत्म करते जा रहे हैं।

नाटक के माध्यम से हम इसी को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। यूनेस्को की इंटरेक्टिव एटलस की रिपोर्ट बताती है कि भारत अपनी 197 भाषाओं को भूलकर अव्वल नंबर पर है। दूसरे नंबर पर अमेरिका 192 भाषाएं और तीसरे नंबर पर इंडोनेशिया 147 भाषाएं है। नाटक में पात्र अमीर और गरीबी के जरिए यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि असमानता की खाई हर देश में फैली हुई है।



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