साध्वी को हराने के लिए दिग्विजय ने तैयार की 'भगवा फौज', बीजेपी के अभेद किले को भेदने के लिए ये है 'प्लान'
भोपाल. मध्यप्रदेश के 29 लोकसभा सीटों में से सबसे हॉट भोपाल है। जहां से कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को तो बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा को मैदान में उतारा है। इस सीट पर सिर्फ एमपी नहीं पूरी देश की निगाहें हैं। यह सीट दिग्विजय की उम्मीदवारी से नहीं मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी रहीं साध्वी के उम्मीदवार बनाए जाने से चर्चा में है। बीजेपी दिग्विजय सिंह को इस सीट पर हिंदू आतंकवाद शब्द के जनक के रूप में प्रस्तुत कर रही है।
वहीं, हिंदूओं के कथित नायक के तौर बीजेपी साध्वी को प्रोजेक्ट कर रही है। साध्वी लगातार आरोप लगाती रही हैं कि उन्हें मालेगांव ब्लास्ट में फंसाया गया है। भोपाल संसदीय क्षेत्र में 70 फीसदी से ज्यादा मतदाता हिंदू हैं जबकि मुस्लिम मतदाता 20-25 फीसदी हैं। ऐसे में साध्वी को ऊतार बीजेपी सीट पर वोटों का ध्रुवीकरण चाहती है। क्योंकि साध्वी के पास दिग्विजय सिंह की तुलना में सांगठनिक शक्ति कमजोर है। साध्वी के चुनाव प्रचार में अभी तक तो झलकियां दिखी हैं, उससे जाहिर होता है कि धर्म के आसरे ही वो चुनावी मैदान में हैं।
दिग्विजय सिंह को वोटरों के बीच जाकर वह उसी रूप में पेश भी करती हैं। साध्वी के भाषणों से भी लगता है कि दिग्विजय के के साथ हिंदू आतंकवाद के मुद्दे को जोड़ वो वोटों को ध्रुवीकरण में लगी हैं। सिर्फ साध्वी ही नहीं पूरी बीजेपी हिंदू और भगवा आतंकवाद के मुद्दे पर दिग्विजय को घेर रहे हैं। ऐसे में हिंदू वोटरों के वोट में जबरदस्त सेंधमारी के लिए दिग्विजय भी अब साधू-संतों का सहारा ले रहे हैं।
दिग्विजय सिंह के गुरु और शंकराचार्च स्वमाी स्वरूपानंद सरस्वती पहले से ही उनके पक्ष में हैं। नामांकन से पहले दिग्विजय सिंह अपनी पत्नी अमृता राय के साथ उनसे आशीर्वाद लेने भी गए थे। स्वारूपानंद सरस्वती भोपाल में दिग्विजय के पक्ष में बात भी कर चुके हैं। स्वरूपानंद सरस्वती ने एक इंटरव्यू में कहा था कि देश में भगवा और हिंदुत्व पर कोई संकट नहीं है। उन्होंने कहा था कि मैं भी तो भगवा पहना हूं।
स्वरूपानंद सरस्वती तो पहले से ही दिग्विजय सिंह के पक्ष में रहे हैं। ऐसे में दिग्विजय सिंह को साध्वी को चुनौती देने के लिए अपने भगवा कुनबे में विस्तार की जरूरत महसूस हुई। क्योंकि साध्वी के भगवा ताकत को कमजोर भगवाधारियों के सहारे ही किया जा सकता था। उसमें दिग्विजय सिंह आगे बढ़ते हुए भी दिखाई दे रहे हैं। सोमवार को पंचायती श्रीनिरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर वैराग्यानंद गिरी महाराज भी इनके पक्ष में आ गए।
उन्होंने भोपाल में मीडिया से बात करते हुए कहा कि हमारे यहां आज सनातन धर्म को बांटा जा रहा है, धर्म के ऊपर कई लोग राजनीतियां करना चाहते हैं। तो मैं कहना चाहूंगा कि हिंदुत्व पर राजनीति नहीं होगा। दिग्विजय सिंह के साथ भारत के संत हैं। मैं उनकी जीत के लिए पांच मई को पांच क्विंटल लाल मिर्ची से यज्ञ करूंगा। मैं दावा करता हूं कि इसकी वजह से दिग्विजय की जीत होगी। अगर नहीं होती है तो मैं उसी जगह जिंदा समाधि ले लूंगा, ये मेरा प्रण है।
वैराग्यानंद यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि भगवा वस्त्र को बदनाम करने वालों के खिलाफ मैं प्रचार करूंगा। साथ ही बीस हजार साधू भी भोपाल में डोर टू डोर कैंपेन चलाएंगे।
दिग्विजय सिंह के इन प्रयासों से जाहिर होता है कि वे भी साध्वी को चुनौती देने के लिए भगवा फौज तैयार कर रहे हैं। जो उनके लिए चुनावी मैदान में प्रचार करें। कुछ हद तक वे इसमें कामयाब होते भी दिखाई दे रहे हैं।
ये है यहां की जातीय गणित
वहीं, अगर भोपाल संसदीय क्षेत्र की जातीय गणित को देखा जाए तो यहां सबसे ज्यादा हिंदू वोटरों की आबादी है। हिंदूओं की आबादी 70 फीसदी से ज्यादा है तो मुस्लिम वोटर्स की जनसंख्या भी 25 फीसदी के करीब है। वहीं, अनुसूचित जाति के वोटर्स यहां 14.83 प्रतिशत हैं और अनुसूचित जनजाति के वोटर्स 2.56 प्रतिशत है। इसके अलावा यहां 21 प्रतिशत वोटर्स ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और बाकी शहरी क्षेत्र में। भोपाल में कुल 18 लाख मतदाताओं की संख्या है, जिसमें साढ़े चार लाख के करीब मुस्लिम हैं।
हालांकि 2018 के विधानसभा चुनावों में भोपाल लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों पर कुछ खास नहीं कर पाई थी। आठ में से पांच पर बीजेपी और तीन पर कांग्रेस का कब्जा है।
'भगवा फौज' से भोपाल जीतेंगे दिग्विजय?
कांग्रेस आखिरी बार 1984 में यह सीट जीती थी। पिछले 35 सालों से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है। 1989 में सुशील चंद्र शर्मा पहली बार यहां से बीजेपी का खाता खोला था। ऐसे में क्या अपनी सटीक रणनीति के जरिए दिग्विजय सिंह बीजेपी के इस अभेद किले को भेद पाएंगे। क्योंकि साध्वी के आने से कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार अल्पसंख्यक वोटों में बिखराव नहीं होगा।
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