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विकास के साथ, सेहत भी तो जरूरी


भोपाल. बीमारू राज्य के कलंक से मुक्त हुआ मध्य प्रदेश स्वास्थ्य सुविधाओं के मोर्चे पर अभी भी पिछड़ा है। हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राजधानी में ही इलाज के लिए मरीजों को यहां-वहां भटकना पड़ता है। बड़े सरकारी अस्पतालों की हालत खस्ता है। उससे भी बुरे हालात प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) के हैं। राजधानी में अलग-अलग विभागों के 14 बड़े अस्पताल और 21 सिविल डिस्पेंसरियां हैं, लेकिन सब बदहाल। कहीं डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ नहीं है तो कहीं आधुनिक उपकरण नदारद हैं। एम्स समेत इन अस्पतालों में शहर ही नहीं प्रदेशभर से बड़ी संख्या में मरीज आते हैं, लेकिन उन्हें महंगे निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। सिस्टम का शिकार इन मरीजों का कहना है कि चुनावों के दौरान तमाम नेता बड़े वादे करते हैं, लेकिन जीतने के बाद जनता की सेहत को हाशिए पर डाल दिया जाता है। शहर के सरकारी अस्पतालों में ट्रांसप्लांट की सुविधा देने का दावा तो किया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि यहां सामान्य इलाज और जांच भी मुहैया नहीं है।

हमीदिया अस्पताल
इंतजार है सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल का: पांच साल पहले 2000 बिस्तरों के सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल में मरीजों को सभी सुविधाएं देने का दावा किया था, जो देश के अन्य बड़े अस्पतालों में मौजूद हैं। आधुनिक अस्पताल के भवन को आकार देने के लिए तीन साल तय किए गए थे, लेकिन अभी भी काम अध्ूारा है। फेज 1-ए में 650 बिस्तर वाली 9 मंजिला बिल्डिंग बननी थी। भू-तल पर ब्लड बैंक व स्टोर रूम, पहली मंजिल पर रजिस्ट्रेशन और ओपीडी, दूसरी मंजिल पर ओटी एवं सुपर स्पेशिएलिटी शुरू करने हैं। बाकी हिस्से में वार्ड रहेंगे, जो केबिन की तरह बनाए जाएंगे। एक वार्ड में सिर्फ 10 बेड रहेंगे। सभी विभागों की ओटी एक जगह ही रहेगी। इसके साथ ही 500 बिस्तर का सुपर स्पेश्एिालिटी ब्लॉक बनाया जाएगा।
स्ट्रेचर और व्हीलचेयर तक नसीब नहीं: दो हजार से ज्यादा मरीजों की ओपीडी और 750 की आईपीडी। इलाज के लिए 250 से ज्यादा कंसल्टेंट और 600 जूनियर डॉक्टर। बावजूद इसके मरीजों को इलाज के दौरान न डॉक्टर मिलते हैं न ही और कोई व्यवस्था। एक से दूसरे विभाग जांच कराने जाने के लिए स्ट्रेचर और व्हील चेयर तक नहीं हैं। यहां चिकित्सा सेवाओं और पेशेंट केयर सिस्टम को सुधारने की कवायद तीन साल से जारी है, लेकिन हालात जस के तस हैं। नतीजतन अस्पताल में जांच से लेकर इलाज तक हर स्तर पर हर समय तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। विभिन्न वार्डों में भर्तीं 750 मरीजों में से औसतन 100 मरीज एक समय में अलग-अलग डिपार्टमेंट में परिजनों के साथ जांच कराने पहुंचते हैं।
जेपी अस्पताल
मॉडल जिला अस्पताल है सपना: जेपी अस्पताल को प्रदेश का मॉडल जिला अस्पताल बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने कई प्रस्ताव तैयार किए। इसके चलते नए भवन के साथ एसएनसीयू और मेटरनिटी विंग का निर्माण भी हो चुका है। इसके साथ ही यहां मॉड्यूलर ओटी बनाकर न्यूरो और हार्ट के ऑपरेशन कराने योजना को भी साकार करना है। अधिकारियों का दावा है कि जिला अस्पताल में डीएनबी कोर्स भी शुरू किया जाएगा, जिसका फायदा मरीजों को मिलेगा। अस्पताल में 9 मंजिला अत्याधुनिक भवन बनाने का प्रस्ताव भी है।
इंतजार... और सिर्फ इंतजार: यहां आंखों के ऑपरेशन के लिए मरीजों को हफ्तों इंतजार करना पड़ता है। कहने को तो अस्पताल में तीन नेत्र विशेषज्ञ के पद हैं, लेकिन एक साल से तीनों खाली हैं। फि लहाल यहां केवल दो मेडिकल ऑफि सर्स हैं। इनकी रात में इमरजेंसी ड्यूटी होने पर अगले दिन ओपीडी से छुट्टी रहती है। नतीजतन मरीज यहां-वहां भटकते रहते हैं। अन्य सर्जरी कराने वालों को काफी इंतजार करना पड़ रहा है। डॉक्टर्स की एक हफ्ते और 15 दिन तक इमरजेंसी ड्यूटी लगाई जाती है। इस दौरान ओपीडी में वे उपलब्ध नहीं होते।
बीएमएचआरसी
सर्वश्रेष्ठ होकर फिसले: वर्ष 1999 में भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) की स्थापना की गई थी। उस दौरान दावा किया गया कि यहां गैस पीडि़तों को सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल के स्तर का इलाज दिया जाएगा। करीब एक दशक तक मरीजों को इसका फायदा भी मिला। वर्ष 2012 तक यह अस्पताल प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ सरकारी अस्पताल में शुमार रहा। यह प्रदेश का एकमात्र ऐसा अस्पताल है, जिसकी सात सब यूनिट हंै। इन यूनिट में इलाज के बाद ही मरीजों को बीएमएचआरसी रैफर किया जाता है। यही नहीं यहां पेट सीटी, एमआरआई, डीएसए सहित करोड़ों रुपए के अत्याधुनिक उपकरण हैं, जो किसी अन्य अस्पताल में मुहैया नहीं होते। विशेषज्ञ डॉक्टर भी यहां सेवाएं दे चुके हैं।
वेंटिलेटर पर पहुंचा दिया: इलाज के लिए मरीजों को रोजाना परेशान होना पड़ रहा है। यहां पर न तो मरीजों को दवाएं मिल रही हैं और न ही ठीक ठंग से इलाज हो रहा है। सोनोग्राफ ी के लिए एक महीने का इंतजार करना पड़ रहा है। अस्पताल पर 5 लाख 74 हजार गैस पीडि़त और उनके करीब डेढ़ लाख आश्रित हैं। गेस्ट्रोसर्जरी, पल्मोनरी मेडिसिन, नेफ्रोलॉजी, न्यूरोसर्जरी, न्यूरोमेडिसिन, रेडियोलॉजी, कार्डियक थोरेसिक, ऑन्को सर्जरी, ऑन्कोमेडिसिन विभाग या तो बंद हो चुके हैं या बिना कंसल्टेंट के चल रहे हैं। अब कार्डियक विभाग भी खाली हो गया है। केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक वेंटिलेटर पर जा चुके बीएमचआरसी को जीवनदान देने का दावा करते आ रहे हैं, लेकिन हुआ कुछ नहीं।
बीते सालों में स्वास्थ्य सेवाओं में गिरावट आई थी। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर ही नहीं हैं। पदों को भरने का काम शुरू किया। 1500 से ज्यादा पद पीएससी को भेजे गए हैं। इसके साथ ही पैरामेडिकल स्टाफ की भर्तियां भी की जा रही है।
तुलसीराम सिलावट, मंत्री, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

केन्द्र सरकार एम्स को और मजबूत करने के लिए योजनाएं बना रही है। सरकार ने मेडिकल कॉलेज, सरकारी अस्पतालों को बेहतर बनाने के लिए कई काम किए हैं। आज मेडिकल कॉलेज में हर वो सुविधा है, जो निजी अस्पताल में हंै। यहां किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट भी होने लगेंगे। मरीजों की सुविधा के लिए बेहतर व्यवस्थाएं जुटाई हैं। अब प्रदेश के बाहर के मरीज भी शहर में इलाज कराने आते हैं।
आलोक संजर, सांसद


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