तुलसी विवाह 8 नवंबर : पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त - Web India Live

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तुलसी विवाह 8 नवंबर : पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त

तुलसी विवाह देवउठनी ग्यारस का पर्व इस साल 8 नवंबर दिन शुक्रवार को है। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार सभी देवी-देवता 4 महीने तक विश्राम करने के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि जागते हैं, जिसे देव उठनी ग्यारस कहा जाता है। इसी दिन से गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार, विवाह संस्कार सहित सभी मांगलिक शुभ कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। जानें देव उठनी ग्यारस पर्व पूजा का सही शुभ मुहूर्त एवं संपूर्ण पूजा विधि।

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देव उठनी ग्यारस- पूजन शुभ मुहूर्त

1- लाभ- प्रातः 8 बजे से 9 बजकर 24 मिनट।

2- अमृत- 9 बजकर 24 मिनट से 10 बजकर 47 मिनट तक।

3- शुभ- दोपहर 12 बजकर 10 मिनट से 1 बजकर 34 मिनट तक।

4- चर - सायंकाल 4 बजकर 21 मिनट से 21 मिनट से 5 बजकर 44 मिनट तक।

5- लाभ- रात्रि 8 बजकर 57 मिनट से रात्रि 10 बजकर 34 मिनट तक।

6- गोधूलि बेला- शाम 5 बजकर 22 मिनट से 5 बजकर 47 मिनट तक।

7- प्रदोष काल- शाम 5 बजकर 22 मिनट से रात 7 बजकर 52 मिनट तक।

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तुलसी विवाह पूजा विधि

देव उठनी ग्यारस के दिन सबसे पहले इस मंत्र का उच्चारण करते हुए देवों को जगायें।

'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।

तुलसी विवाह 8 नवंबर : पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त

1- सूर्यास्त के बाद परिवार सहित संभव हो तो स्नान करके धुले हुये वस्त्र पहनकर पूजन का क्रम पूर्ण करें।

2- तुलसी के पौधे को एक पटिये पर घर के आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें, एवं तुलसी के बगल में ही शालिग्राम जी भी स्थापित करें।

3- अब तुलसी वाले के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।

4- मंडप बनाने के बाद तुलसी माता पर समस्त सुहाग सामग्रियों सहित लाल चुनरी चढ़ाएं।

5- शालिग्राम जी पर तिल ही चढावें, क्योंकि उन पर चावल नहीं चढ़ाये जाते।

6- तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में मिलाकर गीली हल्दी लगाएं।

7- गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।

तुलसी विवाह 8 नवंबर : पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त

8- तुलसी जी और शालिग्राम जी का पूजन करने के बाद मंगलाष्टक का पाठ अवश्य करें।

9- कुछ लोग इस एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ करते है, अत: पूजन के लिए बेर, भाजी, आंवला, मूली, बैंगन एवं गाजर जैसी खाने की चीजे एकत्रित कर वे भी अर्पित करें.

10- पूजन पूर्ण होने के बाद आरती जरूर करें।

11- आरती के बाद तुलसी नामाष्टक मंत्र को पढ़ते हुए दंडवत प्रणाम करें।

वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम।
य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता।।

12- आरती के बाद तुलसी जी एवं शालिग्राम जी को प्रसाद का भोग लगायें।

14- भोग लगाने के बाद 11 परिक्रमा तुलसी जी की करें।

15- पूजा समापन के बाद जब भोजन करे तो भोजन से पहले पूजा के भोग का प्रसाद ग्रहण करें।

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तुलसी विवाह 8 नवंबर : पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त

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