इस दिन ग्वाला बने थे भगवान श्रीकृष्ण, शुरू किया था गाय चराने का काम
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार गोपाष्टमी 4 नवंबर यानी सोमवार को है। मान्यता है कि गोपाष्टमी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ग्वाला बने थे और गाय चराने का काम शुरू किया था। गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि गाय माता में जहां भी विचरण करती हैं, वहां सांप-बिच्छू जैसे विषैले जीव नहीं आते हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति गौ माता की मन से सेवा करता है और पूजा करता है, उस पर आने वाली सभी विपदाएं गौ माता दूर कर देती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गौ माता में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है, ऐसे में यदि कोई गाय माता की सेवा करता है तो उसे उन सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यही कारण है कि हिन्दू धर्म में गाय की सबसे अधिक महत्ता है और गाय को मां का दर्जा दिया गया है।
गोपाष्टमी पूजन विधि
इस दिन सबसे पहले सुबह में उठकर स्नान कर गौ माता को भी स्नान कराएं। इसके बाद उन्हें अच्छी तरह सजाएं। साथ ही उन्हें हल्दी भी लगाएं।
गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजन बछड़े के साथ करें। बछड़े के पांव में घुंघरू बांधें। गौ माता की पूजा धूप-दीप, अक्षत, रोली, गुड़, वस्त्र और जल से करें और अंत में उनकी आरती उतारें।
पूजा करने के बाद गौ माता को चारा खिलाएं और उनकी परिक्रमा करें। परिक्रमा करने के बाद कुछ दूर तक गाय के साथ चलें। हो सकते तो गाय को चराने के लिए ले जाएं। ऐसा करने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होगी।
मान्यता है कि गोपाष्टमी के दिन गाय के नीचे से भी निकलना चाहिए। कहा जाता है कि जितना पुण्य तिर्थ करने से प्राप्त होता है, उससे कहीं ज्यदा गाय के नीचे से निकलने से प्राप्त होता है।
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