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भोजपुर के ऐतिहासिक शिवमंदिर का होगा कायाकल्प

भोपाल : 11वीं सदी में भोजपुर के ऐतिहासिक और विश्व प्रसिद्ध शिव मंदिर का निर्माण करने वाले परमार राजा भोज का सपना अब 21वीं सदी में पूरा होने जा रहा है। सरकार का अध्यात्म विभाग इस शिव मंदिर को बड़ा मंदिर परिसर बनाने का राजा भोज का सपना पूरा करने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है। इस मंदिर को भव्य रुप देने के लिए खर्च होने वाली राशि का आंकलन किया जा रहा है।

सरकार मंडीदीप में चल रही औद्योगिक इकाइयों के सीएसआर फंड से इस ऐतिहासिक शिव मंदिर का कायाकल्प करने की तैयारी कर रही है। मंदिर के आस पास की चट्टानों में वो नक्शा बना हुआ है जो कभी राजा भोज की कल्पना रही होगी। इस शिव मंदिर के परिसर में दस और छोटे-छोटे मंदिर थे जिनको मुगलशाासन काल के दौरान तोड़ दिया गया था। इन मंदिरों के अवशेष भी वहां पर मौजूद हैं। सरकार की कोशिश है कि इन अवशेषों और नक्शे के आधार पर मंदिर परिसर का निर्माण किया जाए।


राजा भेाज का ये सपना होगा पूरा :

इस शिव मंदिर को उत्तर का सोमनाथ कहा जाता है। यहां की चट्टानों से संबद्ध नक्शे के अनुसार यहां पर मंडप, महामंडप और अंतराल बनाने की योजना थी। यहां पर बने मानचित्र से ये साफ पता चलता है कि पहले भी आज की तरह भवन या मंदिर निर्माण नक्शा बनाकर किया जाता था।

परिसर में बने दस छोटे और एक शिवमंदिर, इस तरह 11 मंदिरों के समूह के साथ भव्य और सुंदर परिसर का निर्माण कर इसे देश का सबसे बड़ा मंदिर प्रांगण बनाना था। लेकिन राजा भोज का ये प्रयोजन पूरा नहीं हो सका। यहां तक कि ये शिवमंदिर भी अधूरा रह गया। यहां पर पश्चिमी दिशा में पार्वती गुफा भी है जिसमें पुरातात्विक महत्व की कई मूर्तियां हैं। सरकार ने अब इस अधूरे निर्माण कार्य को पूरा करने का बीड़ा उठाया है।

भोजपुर शिवमंदिर का इतिहास :

राजाभोज ने इस मंदिर का निर्माण 1010 ई - 1055 ई में किया। इस मंदिर में विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग है जो एक ही पत्थर से बना है। इस संपूर्ण शिवलिंग की लंबाई 5.5 मीटर यानी 18 फीट है, व्यास 2.3 मीटर यानी 7.5 फीट का है, जबकि अकेले शिवलिंग की लंबाई 3.85 मीटर यानी 12 फीट है। मंदिर अधूरा निर्माण हैं, जिसके पीछे ये मान्यता है कि मंदिर एक ही रात में निर्मित होना था लेकिन छत का काम पूरा होने के पहले ही सुबह हो गई, इसलिए काम अधूरा रह गया।

मंदिर की गुम्बदाकार छत है, इस मंदिर का निर्माण भारत में इस्लाम के आगमन के पहले हुआ था इसलिए इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बनी अधूरी गुम्बदाकार छत भारत में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन को प्रमाणित करती है। भले ही उनके निर्माण की तकनीक अलग हो। कुछ विद्धान इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत मानते हैं। इस मंदिर का दरवाजा भी किसी हिंदू इमारत के दरवाजों में सबसे बड़ा है। 40 फीट ऊचाई वाले इसके चार स्तम्भ हैं। गर्भगृह की अधूरी बनी छत इन्हीं चार स्तंभों पर टिकी है।

पांडवों के मंदिर बनाने की भी मान्यता :

इस मंदिर के महंत पवन गिरी गोस्वामी कहते हैं कि उनकी यह 19 वीं पीढ़़ी हैै जो इस मंंदिर की पूजा अर्चना कर रही हैै। उन्होंने बताया कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था। पांडवों की माता कुंती ने कहा था कि जब तक शिवमंदिर का निर्माण नहीं होगा तब तक वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगी। पांडवों ने मिलकर इस मंदिर का निर्माण किया। कुंती के पिता का नाम भी भोजराज था इसलिए यहां का नाम भोजपुर पड़ा।

शिवरात्रि पर्व पर भगवान भोलेनाथ का माता पार्वती से विवाह हुुआ था इसलिए इस दिन महिलाएं अपनी मनोकामना के साथ व्रत रखती हैै व भगवान भोले नाथ के पांव पखारने यहां आती है। यहां शिवरात्रि पर्व पर करीब एक लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैैँँ।

वर्जन : यहां पर मौजूद नक्शों को देखकर पता चलता है कि राजा भोज किस तरह के मंदिर निर्माण की कल्पना करते थे। उनकी सोच को ध्यान में रखते हुए इस ऐतिहासिक शिव मंदिर को भव्यता देने की योजना बनाई जा रही है। इस काम के लिए मंडीदीप में स्थापित औद्योगिक समूहों के सीएसआर फंड का उपयोग किया जाएगा।

- पीसी शर्मा मंत्री,अध्यात्म विभाग

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