2020 का सबसे बड़ा सियाासी घटनाक्रम, सिंधिया के भाजपा में शामिल होते ही गिर गई थी कमलनाथ सरकार
भोपाल. साल 2020 अब अलविदा होने वाला है। साल 2020 जहां कोरोना वायरस के लिए याद किया जाएगा वहीं, सियासी उथल-पुथल के लिए भी याद रहेगा। 2020 में प्रदेश और देश का सबसे बड़ा सियासी घटनाक्रम हुआ जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 18 साल पुरानी पार्टी छोड़ दी और मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ। ज्योतिरादित्य के भाजपा में शामिल होने के बाद 20 मार्च को मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार गिर गई।
इस बयान से शुरू हुई अटकलें
मध्यप्रदेश में 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी। विधानसभा चुनाव के समय ये माना जा रहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश के सीएम बनेंगे लेकिन हाई कमान ने मध्यप्रदेश की बागडोर कमलनाथ को सौंपी। कमलनााथ को सत्ता की बागडोर मिलने के बाद से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की लगातार उपेक्षा होती रही और दिग्विजय सिंह का कद लगातार बढ़ता रहा। इस दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अतिथि शिक्षकों की मांग को लेकर कहा कि अगर सरकार ने मांगे नहीं मानी तो वो सड़क पर उतर कर प्रदर्शन करेंगे। इसके साथ ही अटकलों का दौर शुरू हो गया।
राज्यसभा चुनाव से शुरू हुई खींचतान
मध्यप्रदेश में राज्यसभा चुनाव के लिए अप्रैल में तीन सीटों पर चुनाव होना था। लेकिन कांग्रेस में उम्मीदवारों को लेकर खींचतान शुरू हो गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया 2019 में लोकसभा का चुनाव हार गए थे जिसके बाद से माना जा रहा था कि वो राज्यसभा जा सकते हैं। लेकिन एक सीट पर दिग्विजय सिंह का नाम तय था लेकिन दूसरी सीट पर उम्मीदवार कौन होगा। इसे लेकर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व फैसला नहीं कर सका।
5 मार्च को हुआ सियासी ड्रामा
दिग्विजय सिंह ने मार्च के शुरुआती सप्ताह में आरोप लगाया कि भाजपा निर्दलीय और कांग्रेस के कुछ विधायकों को अगवा कर रही है। दिग्विजय सिंह ने इस पूरे मामले में सक्रिय भूमिका निभाई। हालांकि इस दौरान 5 विधायकों को गुरुग्राम के एक होटल से छुड़वाया गया। इस दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया का खेमा खामोश रहा। हालांकि सिंधिया खेम के मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया ने यह कहकर चौका दिया था कि जिस दिन महाराज की उपेक्षा होगा उस दिन प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो जाएगा।
सिंधिया को कमलनाथ सरकार में नहीं मिली तवज्जो
सरकार में उनकी किसी बात को तवज्जो नहीं मिली। दिग्विजय और कमलनाथ की जोड़ी ने हर पल सिंधिया समर्थक मंत्रियों को भी परेशान किया। इसी उपेक्षा के चलते कई बार सिंधिया ने अपनी नाराजी को सार्वजनिक भी किया। उन्होंने वचन पत्र की उपेक्षा पर सड़क पर उतरने की चेतावनी तक दी। प्रदेश में मचे घमासान के बीच कमलनाथ सरकार के 6 मंत्री समेत कई विधायक बेंगलुरु पहुंच गए। चार्टर प्लेन से बेंगलुरु ले जाए गए विधायकों में राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव, गिर्राज डंडौतिया, रक्षा सरौनिया, जसमंत जाटव, जजपाल सिंह जज्जी, बृजेंद्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़ सहित मंत्री प्रद्मुम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, महेन्द्र सिंह सिसौदिया, तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत शामिल थे।
10 मार्च को भाजपा में शामिल हुए सिंधिया
पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की 10 मार्च को 75वीं जयंती थी। यह महज संयोग है कि सात दिन से प्रदेश कांग्रेस सरकार में आए भूचाल के केंद्र बिंदु इस समय उनके पुत्र पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बने। उसी दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए।
20 मार्च को गिरी कमलनाथ सरकार
सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा ने उन्हें राज्यसभा के लिए उम्मीदवार घोषित किया। उसके बाद सिंधिया समर्थक विधायकों को बंगलूरू से लाने की कवादय शुरू हो गई लेकिन विधायकों ने आरोप लगाया है कमलनाथ सरकार से उन्हें जान का खतरा है। इस दौरान राज्यपाल लालजी टंडन ने कमलनाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कई पत्र लिखे लेकिन फ्लोर टेस्ट नहीं हुआ। जिसके बाद भाजपा सुप्रीम कोर्ट पहुंची और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस सरकार फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हुई लेकिन उससे पहले भी 20 मार्च को कमलनाथ ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई। जिसके बाद शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
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