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रुक्मणी अष्टमी व्रत 6 जनवरी को, पढ़ें महत्व, कथा एवं सरल पूजन विधि

पौराणिक शास्त्रों में रुक्मणी को देवी लक्ष्मी का अवतार कहा गया है। एेसे में हर साल रुक्मणी अष्टमी का पर्व पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। एेसे में 2021 में बुधवार, 6 जनवरी को रुक्मणी अष्टमी पर्व मनाया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन द्वापर युग में देवी रुक्मणी का जन्म हुआ था।

एक कथा के अनुसार देवी रुक्मणी भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थी। वे विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं। वे साक्षात् लक्ष्मी की अवतार थीं। रुक्मणी के भाई उनका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे, लेकिन देवी रुक्मणी श्री कृष्ण की भक्त थी, वे मन ही मन भगवान श्री कृष्ण को अपना सबकुछ मान चुकी थी।

मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण ने देवी रूक्मिणी के प्रेम और पतिव्रत को देखते हुए उन्हें वरदान दिया था, कि जो व्यक्ति पूरे वर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन आपका व्रत और पूजन करेगा और पौष मास की कृष्ण अष्टमी को व्रत करके उसका उद्यापन करेगा उसे कभी धनाभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा। जो आपका भक्त होगा उसे देवी लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होगी।

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जिस दिन शिशुपाल से उनका विवाह होने वाला था उस दिन देवी रुक्मणी अपनी सखियों के साथ मंदिर गई और पूजा करके जब मंदिर से बाहर आई तो मंदिर के बाहर रथ पर सवार श्री कृष्ण ने उनको अपने रथ में बिठा लिया और द्वारिका की ओर प्रस्थान कर गए और उनके साथ विवाह किया।

शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ, राधा जी भी अष्टमी तिथि को उत्पन्न हुई और रुक्मणी का जन्म भी अष्टमी तिथि को हुआ है। इसलिए हिंदू धर्म में अष्टमी तिथि को बहुत ही शुभ माना गया है। इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व माना गया है।

यह व्रत घर में धन-धान्य की वृद्धि और रिश्तों में प्रगाढ़ता लाता है तथा संतान सुख भी देता है। प्रद्युम्न कामदेव के अवतार थे, वे श्री कृष्ण और रुक्मणी के पुत्र थे। इस दिन उनका पूजन करना भी अतिशुभ माना जाता है।

एेसे करें पूजन-

1. अष्टमी तिथि के दिन सुबह स्नानादि करके स्वच्छ स्थान पर भगवान श्री कृष्ण और मां रुक्मिणी की प्रतिमा स्थापित करें।

2. स्वच्छ जल दक्षिणावर्ती शंख में भर लें और अभिषेक करें।

3. तत्पशचात कृष्ण जी को पीले और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र अर्पित करें।

4. कुंमकुंम से तिलक करके हल्दी, इत्र और फूल आदि से पूजन करें।
5. अभिषेक करते समय कृष्ण मंत्र और देवी लक्ष्मी के मंत्रों का उच्चारण करते रहें।

6. तुलसी मिश्रित खीर से दोनों को भोग लगाएं।

7. गाय के घी का दीपक जलाकर, कर्पूर के साथ आरती करें। सायंकाल के समय पुन: पूजन-आरती करके फलाहार ग्रहण करें।

8. रात्रि जागरण करें और निरंतर कृष्ण मंत्रों का जाप करें।

9. अगले दिन नवमी को ब्राह्मणों को भोजन करा कर व्रत को पूर्ण करें, तत्पश्चात स्वयं पारण करें।

10. रुक्मणी अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ देवी रुक्मणी का पूजन करने से जीवन मंगलमय हो जाता है और जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।



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