आलू की खेती करके कमाया जा सकता है कम लागत में बड़ा मुनाफा, आपके लिये फायदेमंद हो सकती हैं ये बातें - Web India Live

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आलू की खेती करके कमाया जा सकता है कम लागत में बड़ा मुनाफा, आपके लिये फायदेमंद हो सकती हैं ये बातें

भोपाल/ वैसे तो कृषि प्रधान देश भारत खेती के लिये ही जाना जाता है। यहां हर प्रकार की फल-सब्जियों की खेती की जाती है। इनमें कई हिस्सों में आलू की खेती भी की जाती है, लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के सटे गंजबासोदा के कुरावद गांव में पैदा होने वाले आलू की बात ही कुछ और है। आपको हैरानी होगी कि, इस छोटे से गांव में पैदा होने वाले आलू को देश के कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, बेंगलुरु, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि में निर्यात किया जाता है।

 

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कई तरह के आलू की खेती होती है यहां

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आमतौर पर इस गांव में पुखराज किस्म के आलू की खेती होती है, क्योंकि इसकी पैदावार प्रति बीघा 120 क्विंटल तक होती है। लेकिन, इसके अलावा भी इस गांव में आलू की शतलज, 3797, 166 समेत अन्य कई किस्मों की भी खेती की जाती है, जिनकी पैदावार भारी मात्रा में होती है। इस गांव के किसान आलू के अलावा और किसी चीज की खेती करने को प्राथमिकता नहीं देते हैं। आलू की खेती में ही यहां के किसान सालों से लगे हुए हैं, जिनका कहना है कि, वो इससे अच्छा खासा मुनाफा भी कमाते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि, यहां कुछ किसान तो आलू की खेती करते हुए करोड़पति बन चुके हैं।

 

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इन 2 राज्यों को छोड़कर देशभर में की जाती है आलू की खेती

ऐसे में आर्थिक तंगी के इस दौर में अगर आप भी चाहें तो, आलू की खेती से कम लागत में सालाना अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। लेकिन इसके लिए आपको मिट्टी की गुणवत्ता और बोने का तरीके की जानकारी होनी चाहिए। बता दें कि, भारत में तमिलनाडु और केरल को छोड़कर आलू की खेती सभी राज्यों में की जाती है, जिसका औसत उपज 152 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। हालांकि, इतनी खेती होने के बावजूद ये दुनियाभर में होने वाली आलू की औसत पैदावार से काफी कम है। ऐसे में अगर आप भी आलू की खेती में अपनी किस्मत आजमाने का इरादा रखते हैं, तो हर साल लाखों की कमाई कर सकते हैं। अगर आप इस खेती के लिये इच्छुक हैं, तो आपको ये बातें जानना जरूरी है।


आलू की पैदावार के लिये कौनसी मिट्टी है सबसे बढ़िया?

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वैसे तो आलू की पैदावार किसी भी मिट्टी (क्षारिय के अलावा) में हो जाती है, लेकिन इसके लिये सबसे बढ़िया मिट्टी बलुई-दोमट की होती है। इसके अलावा ऐसी भूमि का चयन करना भी जरूरी है, जहां पर पानी निकासी हो सके। साथ ही, अच्छी पैदावार के लिए रोगमुक्त बीजों की भी आवश्यकता होती है। वहीं, समय-समय पर कीटनाशक और खाद-उर्वरक का प्रयोग करना भी जरूरी है। इससे पौधे में कीड़े नहीं पड़ते, साथ ही आलू भी काफी उन्नत होते हैं।

 

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जानिये बोआई का सही तरीका

आलू की खेती के दौरान फसल बोते समय उनके बीच की दूरी का ध्यान रखना सबसे अहम है, इससे पौधों को रोशनी, पानी और पोषक तत्व आसानी से मिलते रहते हैं। कृषि जानकारों की मानें तो, आलू की क्यारियों के बीच की दूरी कम से कम 50 सेंटीमीटर तो दो पौधों के बीच की दूरी 20-25 सेंटीमीटर होना सबसे बेहतर है। अगर आप इससे कम या ज्यादा दूरी रखते हैं, तो इसका सीधा असर आलू की साइज पर पड़ता है। कम दूरी रखने पर आलू छोटे साइज के होंगे और ज्यादा दूरी रखने पर ये अपने ओसत साइज से बड़े होंगे, लेकिन उपज कम हो जाएगी। ऐसे में औसत दूरी का ध्यान आपको बड़ा मुनाफा कमाने का मौका दे सकता है। बता दें कि, एक बीघा जमीन में 5-6 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है।


खाद्य-उर्वरक का प्रयोग और सिंचाई का तरीका

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आलू की खेती में खाद्य-उर्वरक का इस्तेमाल सबसे जरूरी चीजों में से एक है। इस वजह से फसल में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश पर्याप्त मात्रा में डालें, इससे पौधे की पत्तियां तो बढ़ती ही हैं, साथ ही साथ उनके कंदमूल का आकार भी तेजी से बढ़ता है। वहीं, सिंचाई की बात करें, तो पौधे जब उग जाएं तब पहली बार पटवन करना चाहिए। वहीं, इसके 15 दिन बाद दोबारा पौधों में पानी देना चाहिए। आलू की खेती में पानी देने की ये प्रक्रिया हर 10 से 12 दिन पर दोहराना होती है। पूर्वी भारत में अक्टूबर से जनवरी के बीच बोई जाने वाली आलू की फसल में 6 से 7 बार सिंचाई की जाती है।

 

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इस तरह बचाएं खरपतवार और कीटों से

आमतौर पर आलू के पौधों में एक तरफ तो खरपतवार का खतरा बना रहता है, तो वहीं दूसरी तरफ कीट-पतंगें और अन्य बीमारियां लगने की शंका रहती है। ऐसे में खरपतवार को उगने से रोंके, साथ ही, बुआई के एक हफ्ते में अंदर आधा किलो सिमैजिन 50 डब्ल्यूपी या फिर लिन्यूरोन का 700 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़क दें। इससे आप खरपतवार से बचे रहेंगे। वहीं, कीट-पतंगों से पौधों को बचाए रखने के लिये एंडोसल्फान या फिर मैलाथियान का छिड़काव किया जा सकता है। इसके अलावा जड़ काटने वाले कटुआ कीड़ों से पौधों को बचाने के लिए एल्ड्रिन या हैप्टाक्लोर का छिड़काव निचली सतह पर करना चाहिए।

 

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