मंगल ग्रह की उत्पत्ति का रहस्य, जानें कहां, कैसे व किन परिस्थितियों में हुए थे प्रकट - Web India Live

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मंगल ग्रह की उत्पत्ति का रहस्य, जानें कहां, कैसे व किन परिस्थितियों में हुए थे प्रकट

यूं तो भारत में हजारों लाखों की संख्या में मंदिर हैं। जिनमें देवी देवता सहित कई ग्रहों के भी मंदिर शामिल हैं। लेकिन एक ऐसा मंदिर भी भारत के दिल पर मौजूद हैं, जिसके संबंध में मान्यता है कि ज्योतिष में पराक्रम के कारक ग्रह, जिन्हें हम देव सेनाापति के रूप में भी जानते हैं उनका जन्म यहीं से हुआ था, इसलिए आज तक ये ग्रह धरती पुत्र भी कहलाता है।

जी हां हम बात कर रहे हैं मंगल देव की, जिनके देश में कई मंद‍िर हैं, लेक‍िन हम ज‍िस मंद‍िर का ज‍िक्र कर रहे हैं वह बेहद खास है। क्‍योंक‍ि इसी स्‍थान पर श‍िवजी की कृपा से मंगल देव की उत्‍पत्ति हुई थी। इसल‍िए इसे मंगल की जननी भी कहा जाता है। मंगल ग्रह के लाल होने का रहस्‍य भी इसी मंद‍िर से जुड़ा है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां मंगल दोष की पूजा करवाने आते हैं।

दरअसल हम ज‍िस मंद‍िर की बात कर रहे हैं वह मध्‍य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन में स्थित है। इस मंद‍िर को मंगलनाथ मंद‍िर के नाम से जाना जाता है। पुराणों के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल की जननी कहा जाता है। यानी क‍ि मंगल देव का जन्‍म यहीं हुआ था। मंगलनाथ मंदिर को लेकर मान्‍यता है क‍ि इसी मंद‍िर के ठीक ऊपर आकाश में मंगल ग्रह स्थित है।

मत्स्यपुराण और स्कंदपुराण आदि में भी मंगल देव के संबंध में सविस्तार उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार उज्जैन में ही मंगल देव की उत्पत्ति हुई थी तथा मंगल नाथ मंदिर ही वह स्थान है जहां देव का जन्म स्थान है जिस कारण से यह मंदिर दैवीय गुणों से युक्त माना जाता है।

स्कंद पुराण के अवंतिका खंड के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य को शिवजी ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। वरदान के बाद इस दैत्य ने अवंतिका में तबाही मचा दी। तब दीन-दुखियों ने शिवजी से प्रार्थना की। भक्तों के संकट दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध किया। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ।

शिवजी का पसीना बहने लगा। रुद्र के पसीने की बूंद की गर्मी से उज्जैन की धरती फटकर दो भागों में विभक्त हो गई और यहीं से मंगल ग्रह का जन्म हुआ। शिवजी ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूंदों को नव उत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया। कहते हैं इसलिए ही मंगल की धरती लाल रंग की है।

मंद‍िर को लेकर मान्‍यता है कि यहां पूजा करने से मंगल-दोष से अत‍िशीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के जीवन की सभी विपदाओं को हर लेता है। मंगल को भगवान शिव और पृथ्वी का पुत्र भी कहा कहा गया है। इस कारण मंदिर में मंगल की उपासना शिव रूप में भी की जाती है।

मंगलनाथ मंदिर में मार्च में आने वाली अंगारक चतुर्थी के दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन यहां विशेष यज्ञ-हवन किए जाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन पूजा करने से मंगलदेव तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। यही कारण है इस दिन मंगल ग्रह की शांति के लिए लोग दूर-दूर से उज्जैन नगरी में आते हैं।



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