आत्मनिर्भर भारत : होली के बाजार से चायनीज पिचकारियां गायब
भोपाल. रंगों के बाजार में इस बार आत्मनिर्भर भारत की झलक दिखाई दे रही है। रंगों के बाजार से इस बार चाइना की पिचकारियां गायब नजर आ रही हंै। हर साल होली के पहले शहर के बाजारों में बड़ी मात्रा में चाइनीज पिचकारियां पहुंचती थीं, इस बार भारतीय पिचकारियों का ही दबदबा है। रंगों के पर्व होली को अब सप्ताह भर से भी कम समय रह गया है। ऐसे में रंग, गुलाल, पिचकारियों के बाजार सजने लगे हैं। खरीदारी का सिलसिला भी धीरे-धीरे शुरू हो गया है। व्यापारियों का कहना है कि इस बार बाजार में सिर्फ भारतीय पिचकारियां ही हैं। पहले बाजार में 60 फीसदी भारतीय पिचकारियां, तो 40 फीसदी चायनीज पिचकारियां होती थी। पिछले दो तीन साल से चायनीज पिचकारियों की मांग कम होने से बाजार में इसकी खपत कम हो गई।
दिल्ली-मेरठ से मंगाई पिचकारियां
इस बार भारतीय पिचकारियां ही मंगलवारा में पिचकारियों के विक्रेता सौरभ साहू ने बताया हमारे पास कई वैरायटियों की पिचकारियां हैं और सभी पिचकारियां मेक इन इंडिया हैं। हमारे यहां 5 रुपए से लेकर 600 रुपए तक कीमत वाली पिचकारियां हैं। पिचकारियां दिल्ली और मेरठ से मंगाई गई हैं। पिछले तीन चार साल से हमने चायनीज पिचकारियां मंगानी बंद कर दी थी। इस बार तो पूरी तरह से भारतीय पिचकारियां ही हमारे पास उपलब्ध हैं।
गन, मिसाइल की कई वैरायटियां
पिचकारियों के थोक विक्रेता मुरलीधर ग्वालिनी ने बताया कि इस बार बच्चों और युवाओं में गन और मिसाइल वाली पिचकारियों की मांग ज्यादा है। यह अलग-अलग वैरायटियों में मौजूद है। देशी पिचकारियां ही हमारे पास उपलब्ध हैं। चाइनीज पिचकारियां इस बार हमने नहीं रखी हैं। इसमें हनुमानजी की की गदा वाली पिचकारी भी लोगों को खूब भा रही है। ब"ाों के लिए कार्टून वाली पिचकारियों की भी कई वैरायटियां हैं।
ग्राहकी बढऩे की उम्मीद
इस बार कोरोना संक्रमण के कारण होली के बाजार फीके नजर आ रहे हैं। व्यापारियों का कहना है कि होली को अब चार पांच दिन ही रह गए हैं, लेकिन इस बार बाजार में पिछले सालों जैसी रौनक नजर नहीं आ रही है। इन दिनों ग्राहकी काफी कमजोर है, आने वाले एक दो दिनों में ग्राहकी बढऩे की उम्मीद है।
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