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परिवार नियोजन में सिर्फ 5 फीसदी पुरुषों की रुचि

भोपाल : जनसंख्या नियंत्रण देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। देश के कुछ राज्य ऐसे हैं जहां पर जनसंख्या वृद्धि की दर ज्यादा है। इन राज्यों में मध्यप्रदेश भी शुमार है। प्रदेश की कुल प्रजनन दर भले ही कम होकर राष्ट्रीय स्तर के करीब पहुंच गई हो लेकिन प्रदेश के 25 जिले ऐसे हैं जहां पर जनसंख्या वृद्धि दर प्रदेश से दोगुनी तक है। इन 25 जिलों में पन्ना और शिवपुरी सबसे आगे हैं। इन जिलों को केंद्र सरकार ने अपनी मिशन परिवार विकास में भी शामिल किया है। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग की ताजा रिपोर्ट हैरान करने वाली है। परिवार नियोजन में प्रदेश के सिर्फ पांच फीसदी पुरुषों की रुचि है। चौंकाने वाली बात ये भी है कि सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी प्रदेश के सिर्फ आधा फीसदी पुरुष ही नसबंदी ऑपरेशन करवाते हैं। विश्व जनसंख्या स्थिरीकरण दिवस पर बताते हैं प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि की स्थिति।

ये है प्रदेश का टीएफआर :
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश का टीएफआर यानी टोटल फर्टीलिटी रेट 2.3 है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर टीएफआर 2.2 है। केंद्र सरकार ने मिशन परिवार विकास के तहत टीएफआर 2.1 पर लाने का लक्ष्य रखा है। प्रदेश के जिन 25 जिलों को इस मिशन में शामिल किया गया है उनका टीएफआर 3 से लेकर 4 तक है। इनको कम करना सरकार के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है क्योंकि इसमें पुरुषों की रुचि नजर नहीं आ रही। टीएफआर यानी एक महिला पर 2.3 बच्चों की जन्म दर है।

ये है 25 जिलों की प्रजनन दर :
- पन्ना - 4.1
- शिवपुरी - 4
- बड़वानी - 3.9
- विदिशा - 3.9
- छतरपुर - 3.8
- सतना - 3.6
- दमोह - 3.5
- सीहोर - 3.5
- डिंडोरी - 3.4
- गुना - 3.4
- रायसेन - 3.4
- रीवा - 3.4
- सीधी - 3.4
- उमरिया - 3.4
- सागर - 3.3
- कटनी - 3.2
- शाजापुर - 3.2
- टीकमगढ़ - 3.2
- नरसिंहपुर - 3.1
- राजगढ़ - 3.1
- रतलाम - 3.1
- खरगौन - 3.1
- मुरैना - 3
- खंडवा - 3
- सिवनी - 3

एक साल में इतनी हुई नसबंदी :
साल 2020-21 में सरकारी कार्यक्रम के तहत करीब 2.5 लाख निशुल्क नसबंदी ऑपरेशन किए गए। इनमें अधिकांश महिलाओं की संख्या थी। नसबंदी कार्यक्रम के प्रति लोगों को आकर्षित करने के लिए सरकार 2000 रुपए देती है। जो 25 जिले मिशन में शामिल हैं उनको प्रति व्यक्ति 3000 तीन हजार रुपए आर्थिक क्षतिपूर्ति के रुप में दिए जाते हैं। इसके अलावा अस्थाई साधनों का वितरण भी किया जाता है हालांकि उसकी आपूर्ति की मांग सिर्फ 12.1 फीसदी है। महिलाएं गर्भ निरोधक गोलियों का इस्तेमाल ज्यादा करती हैं। साल 2013-14 में इन ओसी पिल्स का इस्तेमाल 10 फीसदी था जो साल 2019-20 में 45 फीसदी तक पहुंच गया लेकिन 2020-21 में ये 30 फीसदी पर आ गया।

परिवार नियोजन कार्यक्रम पर इतने हुए खर्च :
परिवार नियोजन कार्यक्रम पर सरकार बड़ा फंड खर्च करती है। पिछले पांच सालों में इस कार्यक्रम पर करीब 1200 करोड़ का आवंटन हो चुका है जिनमें से 967 करोड़ रुपए खर्च भी किए जा चुके हैं। सामाजिक कार्यकर्ता रोली कहती हैं कि ये आंकड़ा इस ओर भी इशारा करता है कि परिवार नियोजन के कार्यक्रमों के लिए अभी और फोकस्ड होकर काम करना होगा। लोगों के बीच जागरुकता कार्यक्रम को प्रभावी और मजबूत करने की भी जरुरत है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी कहते हैं कि परिवार नियोजन जबरिया नहीं स्वेच्छा से किया जाता है। इसके लिए जनजागरुकता बहुत जरुरी है। हम लगातार लोगों को जागरुक कर रहे हैं।



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