यह है माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली भावना डेहरिया, अब नए मिशन की कर रही तैयारी
भोपाल। मध्यप्रदेश की पर्वतारोही भावना डेहरिया के लिए 22 मई का दिन बेहद खास है। इसी दिन उसने दुनिया को बता दिया था कि एक महिला भी माउंट एवरेस्ट को फतह कर सकती है।
एवरेस्ट फतह की दूसरी वर्षगांठ पर भावना डेहरिया मिश्रा ने शेयर किए अपने अनुभव।
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बचपन में पहाड़ों पर चढ़ने का सपना देखने वाली भावना धीरे-धीरे एवरेस्ट पर चढ़ने का सपना देखने लगी थी। इस दिशा में उसने प्रयास भी शुरू कर दिए थे। भावना कहती है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर भारत का तिरंगा लहराना मेरे लिए गर्व का क्षण था। यह मेरे लिए देश को गौरवान्वित करते हुए बचपन में देखे गए सपने सच साबित हो रहे थे।
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भावना एवरेस्ट फतह करने से चार साल पहले तक कड़ी मेहनत की। हर बारीकियां सीखी, जो एक पर्वतारोही को ध्यान में रखना होती है। 22 मई 2019 का दिन था, उसने अपना सच साबित होते हुए देखा। भावना कहती है कि जब मैंने वास्तव में महसूस किया कि मैं दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर हूं जिसे नेपाल में 'सागरमाथा' कहते हैं। 8,848 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर ऐसा लगा जैसे दुनिया जीत ली हो।
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अब एक मां भी है भावना
भावना डेहरिया अब सिर्फ पर्वतारोही ही नहीं रही। वो एक मां भी है। वह दो जिम्मेदारियों निभाती हैं। अब उसका अगला अभियान भी तैयार है। उसके तैयार में अपने आपको फिट रखने की मेहनत कर रही है।
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भावना बताती हैं कि 'एलिसन जेन हरग्रीव्स ने गर्भावस्था के दौरान भी चढ़ाई करने के लिए मुझे प्रेरित किया। वह अपने बच्चे के साथ 6 माह माह की गर्भवती होने के बावजूद एइगर (आल्प्स) पर चढ़ गई। यह दुनिया की ऐसी पर्वतारोहिओं में से है जो 13 अगस्त 1995 को शेरपा और ऑक्सीजन के समर्थन के बगैर एवरेस्ट पर पहुंची थीं।
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पातालकोट में की सबसे पहले चढ़ाई
छिंदवाड़ा के पातालकोड के एक छोटे से आदिवासी बहुत क्षेत्र की एक पहाड़ी पर उसने चढ़ाई शुरू की थी। हालांकि थोड़ी देरी से प्रोफेशनल ट्रैकिंग उत्तराखंड गढ़वाल से डोकरियानी बमक ग्लेशियर में शुरू की।
भावना ने अंतिम बार मार्च 2020 में ऑस्ट्रेलिया के माउंट कोसियस्ज़को पर चढ़ाई की थी। यही वह वर्ष था जब मेरी शादी हुई और परिवार के बारे में सोचा। गर्भावस्था के दिनों में भी फिटनेस प्रशिक्षण जारी रखा।
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बेटी को भी हो गर्व
भावना कहती है कि मेरा पहाड़ों का सफर आगे भी जारी रहेगा। महामारी के बाद मेरे माउंटेन अभियान को बढ़ाऊंगी। ताकी मेरी बेटी भी मुझ पर गर्व कर सके। वह भी अपने लक्ष्य के लिए संघर्ष करना सीख सके।
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