भोपाल के इस मैदान में आने से पहले पार करने पड़ते थे कई दरवाजे, दीवारों पर दर्ज थी इकबाल की शायरी - Web India Live

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भोपाल के इस मैदान में आने से पहले पार करने पड़ते थे कई दरवाजे, दीवारों पर दर्ज थी इकबाल की शायरी

भोपाल. राजधानी स्थित ऐतिहासिक इकबाल मैदान तक पहुंचने के लिए कई दरवाजे पार करने पड़ते थे। इनमें एक बचा है, बाकी ढह चुके हैं। मशहूर शायर अल्लामा इकबाल की याद दिलाने वाले इस मैदान के नामकरण के साथ उनकी शायरी भी मैदान की बाउंड्री पर दर्ज थी।
इकबाल मैदान के पास शौकत महल, सदर मंजिल, शीशमहल, रियाज मंजिल सहित कई इमारतें हैं। पहले यहां एक उद्यान था।
इसे खिन्नी वाले मैदान के नाम से भी जाना गया। इसके ठीक सामने इकबाल को ठहराया था। बाद में प्रशासन ने मैदान का नाम इकबाल मैदान कर दिया। कुछ समय पहले यहां भूमिगत लाइब्रेरी थी। यहां कई दुर्लभ किताबें थी। करीब चार साल पहले लाइब्रेरी में पानी भर गया जिसके चलते दूसरी जगह इसे शिफ्ट किया गया। यहां देश के कई हिस्सों से जुटाई दुर्लभ किताबें थी।

मैदान के पास सदर मंजिल
में लगता था दरबार
इस मैदान के पास सदर मंजिल में दरबार लगा करता था। जहां रियासत के दौर के कई अहम फैसले लिए गए। पहले यह नगर निगर निगम का मुख्यालय था। इसे हाल में रिनोवेट किया गया है।

कई नज्में लिखी
गई हैं यहां
जानकारों के मुताबिक अल्लामा इकबाल 1931 से 1936 के बीच चार अलग-अलग मौकों पर भोपाल आए थे। उन्होंने करीब छह माह भोपाल में बिताए जहां ऐसी शायरी की जो आज भी लोगों की जुबां पर है। जानकार बताते हैं कि इकबाल ने अपनी 14 प्रसिद्घ नज्में भोपाल में ही लिखीं, जिसे जर्ब-ए-कलीम नाम की किताब में संग्रहित किया गया है।



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