Sri Krishna Janmashtami 2021 vrat katha: जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के जन्म की कथा को सुन व्रत पूजन करें पूर्ण - Web India Live

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Sri Krishna Janmashtami 2021 vrat katha: जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के जन्म की कथा को सुन व्रत पूजन करें पूर्ण

नई दिल्ली। Sri Krishna Janmashtami 2021 vrat katha. आज देशभर में जन्माष्टमी की धूम मची हुई है। ये त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है। कहा जाता है कि भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म (Janmashtami) हुआ था। इस तिथि को सनातन धर्म के लोग कृष्ण जन्माष्टमी (Sri Krishna Janmashtami) के रूप में मनाते हैं। मान्यता है कि भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं और इस मौके पर श्रद्धालु श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करते हैं। जन्माष्टमी (Janmashtami) के मौके पर श्री कृष्ण की पूजा के दौरान कृष्ण जी की जन्म कथा ( सुनना जरूरी माना जाता है। ऐसे में हम श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के मौके आपको उनके जन्म की कथा (Sri Krishna Janmashtami vrat katha) सुनाने जा रहे हैं।

पृथ्वी पर कंस का अत्याचार

बात द्वापर युग की है जब पृथ्वी पर कंस (kans) के अत्याचार से लोग परेशान थे। उस समय भोजवंशी राजा उग्रसेन का मथुरा (mathura) में शासन था। वह बड़े ही दयालु थे और प्रजा भी उनका काफी सम्मान करती थी, लेकिन उनका पुत्र कंस दुर्व्यसनी था और प्रजा को कष्ट दिया करता था। जब उसके पिता को ये बात पता चली तो उनके पिता उग्रसेन ने उसे खूब समझाया। बावजूद इसके कंस ने अपने पिता की बात न मानकर उन्हें ही गद्दी से उतार कारागार में डाल दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन थी देवकी (Devaki), जिसका विवाह वसुदेव (Bashudev) नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।

आकाशवाणी से कंस को मिला मृत्यु का संदेश

कंस अपने बहन देवकी ये बहुत प्रेम करता था। एक समय कंस जब अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था कि तभी अचानक रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक (devki ka athvan putra) तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए आगे बढ़ा।

कंस ने वसुदेव-देवकी को कारागार में डाला

आकाशवाणी सुनने के बाद देवकी ने कंस से कहा- मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। इन्हें मारने से क्या लाभ है। कंस ने अपनी बहन से बहुत प्रेम करता था इसीलिए उसने देवकी की बात मान ली, लेकिन वसुदेव और देवकी को उसने कारागृह में डाल दिया।

जन्म से ही शुरू हुईं भगवान कृष्ण की लीलाएं

वसुदेव-देवकी की एक-एक करके सात संतानें हुईं और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब बारी थी आठवे बच्चे के होने की। कंस ने इस दौरान कारागार में वसुदेव-देवकी पर और भी कड़े पहरे बैठा दिए। देवकी के साथ नंद की पत्नी यशोदा भी मां बनने वाली थी। उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी।

विष्णु का वसुदेव-देवकी को संदेश

इसी दौरान कारागार में भगवान विष्णु (vishnu) प्रकट हुए, उन्होंने देवकी-वसुदेव से कहा ‘मैंने इस पृथ्वी को कंस के अत्याचार से मुक्त करने के लिए जन्म (Janmashtami) लिया है। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में ले जाओ और उनके यहां जिस कन्या का जन्म हुआ है, उसे लाकर कंस को दे दो। भगवान ने कहा इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है, लेकिन फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के दरवाजे अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग खुद दे देगी।

कन्या को लेकर कारागार में आए वसुदेव

भगवान के आदेश अनुसार वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण (shree krishna) को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और यमुना (yamuna) को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। जहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और उनकी कन्या को लेकर मथुरा आ गए। वसुदेव के आते ही कारागृह के फाटक पहले की ही तहर बंद हो गए। कंस तक वसुदेव-देवकी के बच्चा पैदा होने की सूचना पहुंच गई।

खबर मिलते ही कंस ने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीना और जैसे ही उसने उस बच्ची को पृथ्वी पर पटक देना चाहा, वैसे ही कन्या आकाश में उड़ गई और उसने कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा। तुझे मारनेवाला तो वृंदावन पहुंच चुका है और वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।

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इस तरह से भगवान कृष्ण ने वसुदेव और देवकी के घर जन्म लिया और वृंदावन में बाल लीलाएं दिखाईं। यही वजह है कि जन्माष्टमी (Gokulashtami) के मौके पर श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके साथ ही भगवान का व्रत रखकर उनकी कथा सुनकर (Sri Krishna Janmashtami vrat katha) भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं।



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