अलविदा: 2700 लाशों का अंतिम संस्कार कर चुकी थीं 'हीरा बाई', श्मशान में जाने से नहीं लगता था डर
भोपाल। श्मशान.....यह शब्द सिहरन पैदा करता है, भयभीत कर देता है। यहां जाने से पहले हर व्यक्ति एक बार जरूर सोचता है, लेकिन हीरा बुआ लगभग हर दूसरे दिन यहां आती थी। किसी लावारिस लाश को मोक्ष दिलाने। अपने जीवन में 2700 लाशों का अंतिम संस्कार करने वाली हीरा बाई परदेशी जिन्हें लोग प्यार से हीरा बुआ कहते थे. वे अब नहीं रहीं। शनिवार को उन्होंने दम तोड़ दिया।
हमारे समाज में जिन श्मशानों में महिलाओं का जाना वर्जित माना जाता है हीरा उसी श्मशान में बीते 24 साल से लागातर बेसहारा शवों की मसीहा बनी हुई थीं। गांधी मेडिकल कॉलेज में बतौर "आया काम करने वाली हीरा बाई का एक बेटा है मोहित मां के ना रहने से "वो बेसुध है। मोहित भी मां के काम में मदद करता था। मोहित कहता है कि जब मां अकेली हो गई थीं, तब किसी ने उनका साथ नहीं दिया था। इसलिए मां किसी को ऐसे अकेले नहीं। छोड़ना चाहती थीं। हीरा बुआ अकसर कहा करती थी कि जिस देह का कोई नहीं उसकी मदद करने का सुख क्या है, वह शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
कई बीमारियों से घिरी थीं बुआ
अस्पताल से मिली जानकारी अनुसार उन्हें 27 अक्टूबर को शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया था। उन्हें ब्लड प्रेशर, थायराइड और अन्य बीमारियां भी थी। अस्पताल के डॉक्टर्स ने उनका डेंगू टेस्ट रेपिड पद्धति से किया था, जो कि पॉजिटिव आया। इसके साथ ही उनकी प्लेटलेट्स भी तेजी से कम हो रही थी। जिस समय उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था तब उनकी प्लेटलेट्स 55 हजार थी, जो शुक्रवार शाम को सिर्फ 22 हजार रह गईं। डेंगू के कारण उनका ब्रेन एक दम शॉक्ड में चला गया था, जिस कारण उनकी मौत हो गई। हालांकि स्वास्थ्य विभाग से डेंगू से मौत नहीं मान रहा, क्योंकि हीरा बुआ का एलाइजा टेस्ट नहीं हुआ था।
ऐसे शुरू हुआ था सफर
करीब 25 साल पहले एक बुजुर्ग महिला के बेटे का निधन हो गया. था। बुजुर्ग महिला के पास अंतिम संस्कार कराने का कोई साधन नहीं था। जब किसी ने मदद नहीं की तो वह हीरा बुआ के पास आई। उन्होंने उसके बेटे के अंतिम संस्कार के लए चंदा इकत्र किया। इसके बाद हीराबाई ने खुद महिला के बेटे का अंतिम संस्कार कराया। तय से यह सिलसिला चलता रहा।
बुआ मानती थीं दो धर्म- नर व नारी
वे अकसर यह कहती थीं कि 21वीं सदी में लोग जातपात मानते हैं, छुआछूत करते हैं। आज जहां लोग मंगल पर पांव जमाने की कोशिश में लगे हैं। वहीं हमारे पैर अभी भी जात पात की जंजीरों से बंधे हुए हैं। वे कहती थीं कि वह सिर्फ दो धर्म मानती है नर और नारी, बाकी तो लोगों ने बना दिए।
अस्पताल के गरीब मरीजों के लिए क्षति
हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ. लोकेन्द्र दवे कहते हैं हीराबाई की मौत गरीब मरीजों के लिए सबसे बड़ी क्षति है। लावारिस लाशों का अमित संस्कार तो करती ही थी, साथ ही भर्ती गरीब मरीजों की हर तरह की मदद के लिए भी तैयार रहती थीं। उनके नहीं रहने से बड़ा नुकसान होगा।
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