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किस खेत में कब जलाई पराली, बता रहा सेटेलाइट

भोपाल. सामान्यत: रबी सीजन में खेतों में बचे अवशेषों को आग लगाकर खत्म करने के मामले सामने आते थे, पर अब खरीफ सीजन में ये मामले कई गुना बढ़े हैं। इसकी वजह मप्र में धान, ज्वार और मक्का के रकबे में इजाफा है। बहरहाल भारत सरकार की सेटेलाइट सेवा के जरिये मप्र देश का पहला राज्य है जहां एक नवंबर से खेतों में आग लगाए जाने की घटनाओं की न मॉनीटरिंग की जा रही है। इसके अलावा कृषि अभियात्रिकी विभाग द्वारा मप्र के सभी कलेक्टरों को इसका रियल टाइम डाटा भी मुहैया कराया जाता है, ताकि खेतों में पराली में आग लगाने की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके। इसके लिए रोजाना शाम को सभी कलेक्टरों को सेटेलाइट मॉनीटरिंग से मिले आंकड़े मसलन किस विकासखंड और किस गांव के खेत में आग लगाई गह है, उसकी जानकारी आग लगाए जाने के समय के साथ मुहैया कराई जाती है। मालूम हो कि नवंबर के पहले सप्ताह में ही प्रदेश भर में पराली जलाए जाने के 2532 मामले सामने आए थे। इनमे सबसे अधिक घटनाएं जबलपुर और होशंगाबाद संभाग में दर्ज हुईं। आंकड़ों के मुताबिक रोजाना प्रदेशभर में औसतन दौ सौ से अधिक मामले सामने आ रहे हैं।

कार्रवाई को लेकर असमंजस
सूत्रों के मुताबिक जिला स्तर पर कलेक्टरों को पराली जलाए जाने संबंधी आंकड़े और लोकेशन मुहैया कराई जा रही है, पर जुर्माना समेत अन्य कार्रवाई को लेकर फिलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक धान, ज्वार समेत मक्का आदि फसलों का रकबा बढऩे से इस साल खरीफ सीजन में पराली जलाने के मामले ज्यादा सामने आए हैं। इसकी वजह इन फसलों के अवशेषों का रोटावेटर या अन्य कृषि उपकरणों से खत्म नहीं होना है। इस पूरी प्रक्रिया में खर्च भी अधिक आता है। इससे बचने के लिए किसान खेतों में आग लगाते हैं।
जमीन मसेत वायु को नुकसान
खेतों में बचे कृषि अवशेषों को जलाने से मिट्टी के पोषक तत्वों को खासा नुकसान होता है। इसके अलावा मिट्टी की उवर्रकता को बनाए रखने में सहयोगी सूक्ष्म जीवों की कमी होती है। पराली जलाने से इससे होने वाले धुएं से वायु प्रदूषण बढ़ता है।
वर्जन
सेटेलाइट मॉनीटरिेंग के जरिये मिलने वाले रियल टाइम आंकड़े और लोकेशन को रोजाना सभी कलेक्टरों को भेजा जा रहा है। सेटेलाइट इमेज से गांवों और वहां के खेतों के साथ ही वहां लगी आग के समय की सटीक जानकारी मिलती है।
राजीव चौधरी, कृषि अभियांत्रिकी विभाग



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