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घने जंगल में बना अखाड़ा, दारासिंह ने दी थी इस बड़े पहलवान को चुनौती

मुकेश विश्वकर्मा भोपाल. झांकी के विसर्जन स्थल से प्रसिद्ध खटलापुरा में आज से सवा सौ साल पहले जंगल हुआ करता था। इसी खटलापुरा में कुश्ती के लिए मिट्टी के एक अखाड़े की नींव डाली गई जिसमें लोग अभ्यास करने आते थे। उस दौर के पहलवान जीवन यादव आज भी खटलापुरा स्थित बजरंग अखाड़े में युवा पहलवानों को कुश्ती के दांव पेंच सिखा रहे हैं।

इस अखाड़े से ऐसे पहलवान निकले जो दारासिंह जैसे देश के बड़े पहलवानों के दंगल में कुश्ती लड़ा करते थे। खास बात यह है कि जब दारासिंह ने भोपाल में पहलवान थानयंग चंग को चुनौती दी तो दंगल में इस अखाड़े के पहलवान भी शामिल हुए. अपने जमाने के मशहूर पहलवान भरत पांडे बताते हैं कि आज से सवा सौ साल पहले यहां तालाब नहीं था। तब हमारे परदादा यहां मवेशियों चराने आते थे।

 

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वे यहीं कुश्ती भी खेला करते थे। उन्होंने ही यहां बजरंग अखाड़े की स्थापना की थी। उन्होंने बताया कि बड़े तालाब का पानी यहां झरने रूप में बहता रहता था। फिर यहां ताल बांधा गया। जिससे पानी एकत्रित हो गया और छोटे तालाब का रूप ले लिया। लेकिन अखाड़ा कोने में होने के कारण अभी भी जीवित है। यहां कई पहलवान तैयार हुए हैं जिन्होंने देश में अपनी पहलवानी से खूब नाम कमाया है।

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दारासिंह ने थानयंग चंग को चुनौती दी थी
पहलवान जीवन यादव बताते हैं कि मैंने इस अखाड़े से कुश्ती सीखी थी। 1974 में भोपाल में दारा सिंह ने एक दंगल में कुश्ती लड़ी थी। तब दारासिंह ने थानयंग चंग को चुनौती दी थी। इस दंगल में इस अखाड़े के पहलवानों ने भी जोरअजमाइश की थी जिसमें मैं भी शामिल था। तब इंडियन और फ्री स्टाइल और बॉक्सिंग स्टाइल में कुश्ती होती थी।

मिट्टी के अखाड़े से हुई थी शुरुआत
भरत ने बताया कि कुश्ती मिट्टी के अखाड़ों में ही प्रसिद्ध हुई हैं। समय बदला तो धीरे-धीरे गद्दों और अब मैट पर कुश्ती होने लगी। उन्होंने बताया कि ओलंपिक में देश के पहलवानों के प्रदर्शन को देखकर युवा पीढ़ी में भी जोश भरने का काम किया है। जिससे मेरे पास भी जूनियर और सब जूनियर लेवल के बच्चे सीखने आ रहे हैं। मैं यहां दोपहर एक बजे से शाम पांच बजे तक कुश्ती के दांव पेंच सिखाता हूं। अभी एक दर्जन से भी ज्यादा युवा खिलाड़ी यहां तैयारी करने आ रहे हैं।



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