रात भर का सफर और उतरते ही नाचने में जुट गए आदिवासी
भोपाल. डिंडोरी के गाड़ासरई इलाके से रविवार शाम रवाना हुए बैगाओं की टोली सुबह चार बजे दानिश नगर स्थित गांधी पीआर कॉलेज पहुंची। छोटी- छोटी जीपों में 12 घंटे से Óयादा का सफर करके आए आदिवासी कुछ देर आराम करेंगे, एेसा सभी ने सोच रखा था, लेकिन गजब के मेहनती बैगा कहां बैठने वाले थे। जीप से उतरकर दल ने चाय पी और कुछ देर बाद अपनी बांसुरी, मंदरी उठाई और घेरा बनाकर जो नाचना शुरू किया तो फिर नहीं रुके। उजियारा फैला, धूप खिली और गर्माहट बढऩे के साथ आसपास के लोग जुटते गए। धीरे-धीरे लेकिन लगातार मांद पर थाप पड़ती रही और बांसुरी की तान पर नृत्य चलता रहा। एेसा करते-करते बैगा सुबह के 10 बजे तक नहीं रुके।
रात भर के सफर के बाद सुबह चार घंटे लगातार नृत्य की क्षमता के बाद असल नमूना तो देखना बाकी था। 11 बजे जम्बूरी मैदान के लिए निकले बैगा मैदान पर पहुंचकर फिर घंटों थिरकते रहे। डिण्डोरी से आए रामफल जैसवार ने बताया कि, हम बैगा नृत्य कर रहे हैं। यह समूह नृत्य है जितने लोग होते हैं जुड़ते जाते हैं। आज हम 15 लोगों के समूह में नृत्य कर रहे हैं। शहर की भीड़ और कार्यक्रम की चकाचौंध से अनजान यह समूह बिना थके बिना रुके शाम तक अपनी मौज में खोया हुआ जिस तरह आया था, उसी शांति के साथ वापस रवाना हो गया।
छिंदवाड़ा के हर्रई से आए आदिवासी समूह के 16 व्यक्ति भी सुबह से नृत्य में रम गए। कई घंटों तक नाचने गाने के बाद यह लोग पारंपरिक वेशभूषा में तैयार होकर जम्बूरी मैदान को रवाना हो गए।
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