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bhopal news culture-त्याग, संयम और राम प्रेम की मूर्ति के रूप में भरत का जीवन

भोपाल@पत्रिका. पहली बार एलबीटी सभागार में नृत्य नाटिक 'भरत चरितम्Ó का मंचन किया गया। रामायण की कथा पर यूं तो कई नाटकों में दर्शकों ने भरत के समर्पण को देखा है, लेकिन यह पहली बार था कि दर्शकों को रामायण की कथा भरत को केंद्र में रखते हुए प्रदर्शित की गई। चैतन्य सोश्यो कल्चरल सोसायटी द्वारा प्रस्तुत नाटक को डॉ. श्रुति कीर्ति बारिक ने निर्देशित किया। जौं न होत जग जनम भरत को, सकल धरम धुर धरनि धरत को। कबि कुल अगम भरत गुन गाथा, को जानइ तुम्ह बिन रघुनाधा। इस चौपाई के साथ नाटक की शुरुआत होती है। तत्पश्चात सूत्रधार नाटक की पृष्ठभूमि बताते हैैं, भरत के जन्म से पूर्व की, और इस तरह रामायण की यह कथा नृत्य और संवादों के साथ आगे चलती है, जिसमें भरत के धैर्य और राम के प्रति उनके प्रेम के भावों को उतारा गया। अंत में राम कहते हैैं कि जब भी धर्म की बात की जाएगी तो एक ही नाम लिया जाएगा और वो 'भरतÓ होगा।

 

 

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महाभारत की द्रुत क्रीड़ा, युधिष्ठर और द्रौपदी का कथानक
वृन्दा कथक केन्द्र की ओर से आयोजित चक्रधर महोत्सव में अमृता जागम का भरतनाट्यम और एकता मिश्रा का कथक नृत्य हुआ। बेंगलूरु की नृत्यभूषण अमृता जागम ने भरतनाट्यम में रामचन्द्र की शबरी मोक्षम और सीता स्वयंवर को थोडई मंगलम में पेश किया जो ताल, राग मलिका में रही। इसके बाद शब्दम् में राग मलिका, ताल मिश्र चापू में अपनी प्रस्तुति दी। जिसमें महाभारत की द्रुत क्रीड़ा, युधिष्ठर और द्रौपदी का कथानक पेश किया। कथक प्रस्तुति में लखनऊ की एकता मिश्रा ने राम वंदना के बाद तीन ताल में शुद्ध पारंपरिक कथक किया। अंत में ठुमरी ‘‘छोडो छोड़ो बिहारी की मनमोहक प्रस्तुति दी। रायगढ़ घराने के शुद्ध कथक पर समूह नृत्य की प्रस्तुति दी।



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