श्रीमद भागवत कथा को दल से नहीं दिल से जोड़े, बांके बिहारी के चरणों में मिलेगा स्थान: आचार्य मृदुल कृष्ण - Web India Live

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श्रीमद भागवत कथा को दल से नहीं दिल से जोड़े, बांके बिहारी के चरणों में मिलेगा स्थान: आचार्य मृदुल कृष्ण


उमड़े भक्त, छोटा पड़ा पंडाल 
संत हिरदाराम नगर। संत हिरदाराम नगर में संत शिरोमणि हिरदाराम जी साहिब के आंगन में श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन रविवार को आचार्य श्री मृदुल कृष्ण जी महाराज ने कहा कि इस श्रीमद् भागवत कथा को किसी दल से मत जोड़ो। इस कथा को दिल से ही जोड़ना। अगर कथा को दल से जोड़ोंगे तो दल-दल में गिरोगे और अगर कथा को दिल से जोड़ोगे तो भगवान श्री बांके बिहारी के चरणों में जाओगे। भागवत में लिखा है कि किसी को उपहार दो ना दो पर मुस्कुराहट जरूर दे। जो व्यक्ति दुखी हो, रो रहा हो उसे मुस्कुराहट दो। जिन्होंने बांके बिहारी की मुस्कुराहट को देख लिया वह सब कुछ भूल जाता है श्रीकृष्ण की मुस्कुराहट में खो जाता है। रविवार होने के कारण आज 30 हजार से अधिक श्रृद्धालु कथा सुनने आये। भक्तों का उत्साह इतना था कि बैठने की जगह कम होने के बाद भी वह पंडाल के बाहर बैठकर कथा सुनते रहे। सोमवार को श्रीमद भागवत कथा का आखिरी दिन है। फूलों की होली के साथ कथा का समापन होगा। आचार्य श्री ने अपील की है कि भक्त चाहे तो घर से फूलों की पंखुड़ी लाकर इसमें अंश दान कर सकते है।
भगवान की मूर्ति को कभी पत्थर न समझे :- आचार्य मृदुल कृष्ण जी
आचार्य मृदुल कृष्ण जी महाराज ने कथा के दौरान कहा कि मूर्ति की दुकान पर भगवान की मूर्ति केवल एक पत्थर है। किन्तु जब वह मूर्ति आपके घर में पूजी जाती है तो उस मूर्ति के कण-कण में प्रभु रहते है। इसलिये पत्थर की मूर्ति को कभी पत्थर नहीं समझना चाहिये। भगवान की मूर्ति को कभी पत्थर मत समझना। पत्थर की प्राण-प्रतिष्ठता हो जाये तो समझ लो कि मूर्ति के अंदर भगवान आकर विराजमान हो गये। भागवत जी कहते है कि फिर उस पत्थर में भगवान के ही दर्शन होते है। आचार्य श्री ने कहा कि भगवान के भोग में तुलसी पत्र जरूर डाले। बिन तुलसी के भगवान भोग ग्रहण नहीं करते। तुलसी भगवान को बहुत प्रिय है। भक्त को यदि फल चाहिये तो धैर्यपूर्वक पूजा करना चाहिये। धैर्यपूर्वक पूजा करने के बाद उसे फल मिठा ही मिठा मिलेगा।


प्रेम शरीर से नहीं आत्मा से होता है :- आचार्य मृदुल कृष्ण जी
आचार्य महाराज ने प्रेम शब्द को दुनिया का सबसे बृहद शब्द बताया। प्रेम किसी के दबाव और प्रभाव में नहीं होता है। प्रेम यदि होता है तो अंदर भाव जागरण से होता है। आचार्य ने आजकल के प्रेम को बताया कि आज का प्रेम सात दिन में शुरू होकर समाप्त हो जाता है। सोमवार को सामना हुआ, मंगलवार को मिले, बुधवार को बातचीत हुई, गुरूवार को गीत गुन-गुनाये, शुक्रवार को शादी हो गई, शनिवार को शंका हुई और रविवार आते-आते राधे-राधे हो गया। प्रेम किसी के गुण से नहीं होता है, क्योंकि गुण समाप्त होने पर प्रेम समाप्त हो जाता है। प्रेम शरीर से नहीं, आत्मा से होता है। क्योंकि शरीर से प्रेम करना वासना है और आत्मा से प्रेम करना है सच्चा प्रेम है। शरीर का प्रेम कभी भी समाप्त हो सकता है परंतु आत्मा का प्रेम सदेव अमर रहता है। 

इंद्र ने भगवान कृष्ण को दिया गोविंद की उपाधि :-
गिरिराज महाराज की प्ररिक्रमा लगाने जाओ तो कभी ये मत सोचना कि हम पहाड़ की परिक्रमा कर रहे है। जब इंद्र ने बृजवासियों को कृष्ण से अलग करने के लिये बहुत तेज वर्षा की, तब श्रीकृष्ण जी ने गिरीराज जी को प्रणाम कर बृजवासी की रक्षा हेतु उन्हें अपनी उंगली पर उठा लिया और सात दिन-रात तक बृजवासियों की रक्षा की। सात दिन सभी लोग इस पर्वत के नीचे रहे। जब वर्षा बंद हो गई तब श्रीकृष्ण ने गिरीराज जी को नीचे रखकर उनकी पूजा-अर्चना की। इसके बाद इंद्र को अपनी गलती महसूस हुई। तब इंद्र ने गाय के दूध से श्रीकृष्ण का अभिषेक एवं पूजन किया और अपने अपराध की क्षमा मांगी और कहा की हे भगवान इस संसार के रचेता आप है आप ही पिता है आप ही गुरू है। आप जगत गुरू है कृष्ण। तब इंद्र देव ने श्रीकृष्ण को गोविन्द नाम की उपाधि दी।

श्रीकृष्ण के भक्तों को रसिक कहा जाता है :-
रास शब्द बना है रस से। आचार्य मृदुल जी ने कहा कि आजकल रास को बहुत गंदा शब्द बना दिया गया है। जहां एक रस अनेक रूपों में प्रकट होता है, वह रास कहलाता है। भक्त भी रस से भरे होते है, इस कारण भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों को रसिक कहा जाता है। परमात्मा का रस रूप श्रीकृष्ण है। श्रीकृष्ण के रूप में, बोलने में, चलने में, लीला में, भाव में, भागवत में सब में रस है। कृष्ण के भक्त को रसिक कहते है। वहीं लीला, जो हमें भगवान में लीन कर दे। महारास की लीला, भगवान की लीला है। श्रीमद् भागवत कथा में लिखा है महारास लीला के दौरान भगवान ने छः माह की रात कर दी थी। श्रीमद भागवत में लिखा है कि परमात्मा का वास ही रास है। भगवान श्रीकृष्ण का एहसास ही रास है। भगवान श्रीकृष्ण का रास देखने देवी-देवता भी आते है।

राधे-राधे नाम से गूंजा पंडाल :-
आचार्य मृदुल जी ने कथा के बीच में जब भगवान राधेकृष्ण के भजनों की राग छेड़ी तो पंडाल में उपस्थित हजारों श्रद्धालु इन भजनों में खुद को नाचने से नहीं रोक पाये। आचार्य जी ने महारास लीला के भजनों को गाया और रास लीला की झांकी देख हज़ारों भक्त हर्ष उल्लास से खुद नृत्य करने लगे। पूरा पंडाल श्रृद्धा भक्ति से आनंदीत होकर नाचने में मजबूर हो गया। भक्त आधे-आधे घंटे तक बिना रूके नृत्य करते रहे। आचार्य श्री ने रूकमणि विवाह का प्रसंग छेड़ा तो पंडाल में उपस्थित महिलायें और कन्याऐं खुद ब खुद नृत्य करने लगी।

इन गणमान्य नागरिकों ने किया कथा का रसपान :-
जीवन मैथिल, आरती यादव, कमल प्रेमचंदानी, राजेश रघुवंशी, भूपेन्द्र माली, बबली माली, दिनेश यादव, राकेश भदौरिया, राजकुमार राजपूत, जसवंत नरवरिया, शिवनारायण मीना, जसवंत यादव, शिवलाल कुशवाह, बनेसिंह, ललीता बाई, दीवानसिंह लोधी, मुकेश मीना, अरविंद मिश्रा, प्रशांत ठाकुर, रमेश सिलावट, खेमचंद केवट, प्रजापति समाज से होतम प्रजापति एवं समस्त प्रजापति समाज, नरेन्द्र मीना, बने सिंह, मुकेश ठाकुर, वीरेन्द्र सिंह मीना, नारायण सिंह, विष्णु पटेल, देवेन्द्र यादव, जगन्नाथ पटेल, केशव तिवारी, गुलाब सिंह, शिवचरण मैथिल, कमलेश सेनी, लक्ष्मण मीना, संदीप मीना, नाथूराम सेनी, दशरथ मीना मौजूद थे। वही संध्या आरती में दीपा नरेश वासवानी, भारती खटवानी, बसंत भारानी, जी.टी. खेमचंदानी, कैलाश मीरचंदानी, गुलाब जेठानी, सहित हजारों लोग कथा सुनने पहुंचे।

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