कथा के विश्राम दिवस पर आयोजित फूलों की होली में झूमे हजारों भक्त - Web India Live

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कथा के विश्राम दिवस पर आयोजित फूलों की होली में झूमे हजारों भक्त

रोज प्रभु का नाम लें और उन्हें करें प्रणाम :- आचार्य श्री मृदुल कृष्ण जी महाराज
संत हिरदाराम नगर। संत हिरदाराम नगर में श्रीमद् भागवत कथा के विश्राम दिवस सोमवार को आचार्य श्री मृदुल कृष्ण जी महाराज ने कहा कि निसंतान व्यक्ति का पिंडदान कर सकता हैं। कोई भी व्यक्ति जिसकी संतान नहीं हो वह तीर्थ में जाकर स्वयं पिंडदान कर सकता है। शास्त्र कहते हैं कि दत्तक पुत्र पिंडदान कर सकता है। शास्त्र में लिखा है कि ओरश पुत्र की तरह दत्तक पुत्र भी पिंडदान कर सकता है। साथ ही काशी में कर्म का फल नहीं भोगना पड़ता है, बल्कि उसे मुक्ति मिलती है। आज कथा स्थल पर जब फूलों की होली शुरू हुई तो संत हिरदाराम नगर भगवान श्रीकृष्ण की नगरी बृजधाम बन गया। हर मुख से राधे-राधे के बोल ही निकल रहे थे। श्रृद्धालु बिना रूके एक घंटे नृत्य करते रहे और बृजधाम की होली का आनंद उठाते रहे। आचार्य श्री कथा का विश्राम देते हुये कहा कि सभी भक्त दो संकल्प अवश्य लें रोज प्रभु का नाम ले और रोज प्रभु को याद करें। इस बार इस कथा में मुख्य यजमान में कोई दिखाई दे रहा है दिखाई दे रहे है तो भोपाल के सभी भक्त दिखाई दे रहे है। भागवत में लिखा है कि जिस समय भागवत कथा शुरू होती है, वक्ता कथा शुरू करता है और श्रोता बैठता है। तो आपके मन में श्री बांके बिहारी ही इस कथा को बैठकर सुनते है। जो कथा का श्रवण करता है भागवत को सुनता है भागवान कहते है कि मैं उस भक्त को नहीं छोड़ सकता है, मैं उनके हृदय में रहता हूं। सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा के विश्राम दिवस के दिन 40 हज़ार से अधिक श्रृद्धालु जन उपस्थित रहे।

प्रभु का नाम जपते रहो अपने आप मीठा लगने लगेगा :- आचार्य श्री मृदुल जी
आचार्य श्री ने कथा वाचन करते हुये बताया कि रूकमणि जी ही लक्ष्मीजी है। रूकमणि के पिता भिष्मत है। भिष्मत का अर्थ है समुद्र। समुद्र से पहले विष निकला और उसे शंकर जी ने धारण किया। रूकमणि के बड़े भाई रूकमी (विष) है। दूसरी (आठवीं) वस्तु समुद्र से लक्ष्मी जी निकली थी। रूकमणि और श्रीकृष्ण के विवाह में रूकमी ने बाधा डाली थी। जिस तरह श्रीकृष्ण और रूकमणि जी को मिलने से रूकमी बांधा डालता है, उसी तरह श्री जी और भक्त के बीच में विष रूपी बाधाएं एक दूसरे को मिलने से रोकती है। व्यक्ति को प्रभु का नाम हमेशा जपना चाहिये। प्रभु का नाम जपते रहो पहले वह कड़वा लगेगा फिर अपने आप मीठा लगने लगेगा। आचार्य श्री ने राधे-राधे जपने से जीवन आयु बढ़ती है उन्होंने कहा कि आप राधे-राधे जपेंगें उस समय सांस रूक जाती है ऐसे में जब सांस कम लेंगें तो अपने आप आपकी आयु बढ़ जायेगी। आप बस प्रभु के भजन को करते रहिये।

राम की लीला जीवन में उतारने के लिये जरूरी :-
आचार्य श्री ने कहा कि श्रीराम की लीला अनुकर्णिय है। उसे जीवन में उतार सकते है, लेकिन श्रीकृष्ण की लीला अनुकर्णिय नहीं है। श्रीराम का भाई-भाई के प्रति प्रेम, पत्नि के प्रति प्रेम, मित्रों की प्रति प्रेम, माता-पिता के प्रति प्रेम अनुकर्णिय है। जो व्यक्ति श्रीराम जैसे ये कर्म करेगा उसका समाज और जीवन से लगाव बन जायेगा। वहीं श्रीकृष्ण की लीला चिंतनीय है व्यक्ति के उसका चिंतन करना चाहिये। श्रीकृष्ण के लीलाओं को चिंतन कर जीवन में अपनायेंगें वह जीवन में अवश्य ही सफल होगें।

श्रीमद भागवत कथा सुनने से पहुँचेंगें सीधे प्रभु धाम :-
महाराज जी ने कथा सुनाते हुये कहा कि कोई व्यक्ति कोई कार्य पूर्ण मन से नहीं करता है तो, वह कार्य पूर्ण नहीं होता है। अगर कार्य को पूर्ण मन से करेंगें, तो वह कार्य अवश्य पूर्ण होगा। जब कोई व्यक्ति पाप करता है तो उसे नरक मिला है और पून्य करता है तो स्वर्ग मिलता है। जो व्यक्ति भागवत कथा सुनता है वह व्यक्ति प्रभु के परम धाम बेकुंठ को जाते है। जो भक्त श्रीमद भागवत कथा कर्म बंधन से मुक्त होकर सुनता है वह अवश्य प्रभु के चरणों में जगह पाता है।

व्यक्ति का चरित्रवान होना सबसे जरूरी है :-
आचार्य मृदुल कृष्ण जी ने कहा कि प्रसान्ता का मतलब होता है जो मन और बुद्धि से शांत हो, वह प्रसन्न आत्मा है। प्रसन्नता के लिये भगवान को एक मन से याद करों। जरूर प्रसन्नता मिलेगी। व्यक्ति विद्यामान हो, गुणमान हो, बलवान हो, लेकिन शीलवान या चरित्रवान ना हो तो वह व्यक्ति कभी प्रसन्न नहीं रह सकता है। परमात्मा ने मिलने की कोई डेट नहीं बताई, लेकिन मुलाकात जरूर करेंगें। आज भगवान को याद करों, बांके बिहारी आपको अपने चरणों पर ले जाएंगे, ऐसे में भजन और जप करते रहो। भगवान को सच्चे मन से सदा याद करों।

प्रभु को भी भक्त के दर्शन की ललक होती हैं :-
आचार्य श्री ने श्रीकृष्ण और उनके मित्र सुदामा जी का प्रसंग सुनाते हुये कहा कि भागवत में ऐसा लिखा है कि द्वारपाल ने सुदामा जी को धक्का नहीं दिया था, बल्कि उन्हें प्रणाम किया था। जो भगवान के दरबार में खड़ा है, वह दुर्यवहार कैसे करेगा। महाराज जी ने मित्रता को सदगुरू का पूजन का स्थान दिया है। उन्होंने राज गद्दी छोड़ मित्र की पूजा-अर्चना की। भागवत कथा में श्रीकृष्ण कहते है कि तुम जब प्रभु का नाम लेते हो, तो प्रभु को भी भक्त के दर्शन की ललक रहती हैं। भगवान हमेशा भक्त को सुझाते हैं कि मैं हमेशा तेरे साथ हूं, भगवान से कभी अपना विश्वास मत तोड़ना, संसार आपसे विश्वासघात कर देगा, लेकिन प्रभु कभी ऐसा नहीं करेंगें। भगवान के आँखों में आंसू तब आते हैं, जब वे भक्त से मुलाकात करते हैं। भगवान कहते हैं कि भक्त कभी ऐसा ना सोचे कि जो मेरा सच्चा भक्त होता है, दिल से चाहता है, प्रेम करता है, मुझ में पूर्ण विश्वास करता है, वह भक्त कान खोलकर सुन लें कि यदि वह आगे चल रहा है, तो मैं उसके पीछे-पीछे चल रहा हूँ।
यह गणमान्य नागरिक रहे उपस्थित :-
आचार्य श्री रामजीवन दुबे, नानक चंदनानी, रमेशलाल आसवानी, लिलि अग्रवाल, कन्हैयालाल ईसरानी, अशोक आडवानी, सुनील पंजवानी, मामा गोविन्द भम्भानी, श्री चंदरलाल विश्वकर्मा, नरेश पारदासानी, मुकेश गुवलानी, रमेश लखवानी, बसंत भारानी, हरीश वासवानी, केवल टेहलयानी, संत तुलसीदास उदासीन मौजूद थे।


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