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फिजूलखर्ची! स्मार्ट सिटी फिर दोबारा निगम से हो रहे कामों को करवाएगी


भोपाल। राजधानी में रोड सेफ्टी साइनेज, कैंटीलीवर, गेंट्री, कैटआई, साइन बोर्ड जैसे कामों के लिए नगर निगम ने दस साल के लिए एजेंसी से अनुबंध कर रखा है। फिर भी यही काम स्मार्ट सिटी डवलपमेंट कॉर्पोरेशन भी करवा रहा है।
50 करोड़ का टेंडर निकाला है, जिसमें से 26 करोड़ से रोड सेफ्टी संबंधी काम होने हैं। टेंडर में न तो लोकेशन दर्शाई गई और न ही दिशा।
नगर निगम सीमा में यदि स्मार्ट सिटी के टेंडर के अनुसार काम होता है तो करीब 400 गैंट्री साइन बोर्ड और लगाए जाएंगे, जिनके लिए जगह ही नहीं बची है। स्मार्ट सिटी प्रबंधन का तर्क है कि शहर के साथ काम भी बढ़ेगा। यह काम नगर निगम के साथ मिलकर ही करवाया जाएगा।
गौरतलब है कि शहरी क्षेत्र की सभी सड़कें नगर निगम, राजधानी परियोजना प्रशासन और लोक निर्माण विभाग के आधिपत्य में हैं। इनके द्वारा ही रोड सेफ्टी संबंधी कार्य किए जाते हैं।
जहां-जहां काम करना होगा, वहां पहले नगर निगम से पूछेंगे। हमारे पास एक भी सड़क नहीं है, लेकिन किसी न किसी एजेंसी के साथ मिलकर तो हमें यह काम करना ही होगा।
- संजय कुमार, सीईओ, स्मार्ट सिटी डवलपमेंट कॉर्पोरेशन
इधर, प्रशिक्षित स्टाफ नहीं- इसीलिए निजी अस्पताल जा रहे मरीज...
वहीं दूसरी ओर भोपाल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) ने आखिरकार माना कि उनके अस्पतालों में वेंटीलेटर समेत अन्य सुविधाएं हैं, लेकिन इन्हें चलाने वाला प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है।
इसकी वजह से प्रदेश में 70 फीसदी स्वाइन फ्लू मरीजों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ रहा है। शनिवार दोपहर एनएचएम की समीक्षा बैठक में डायरेक्टर निशांत बरवड़े (देर शाम शासन ने उनका ट्रांसफर कर दिया) ने स्वाइन फ्लू की भयावह स्थिति पर सफाई पेश की। गौरतलब है कि पत्रिका ने एक मार्च के अंक में सरकारी अस्पतालों में स्वाइन फ्लू को लेकर इंतजामों की हकीकत बताई थी।




सबसे ज्यादा मरीज भोपाल में: प्रदेश में स्वाइन फ्लू का सबसे ज्यादा असर भोपाल में देखने को मिल रहा है। हालांकि मौत के मामले में इंदौर आगे है। एनएचएम के आंकड़ों के मुताबिक भोपाल में अब तक 91 मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हो चुकी है। इंदौर में 45 मरीज सामने आए। दोनों ही शहरों में 14-14 मरीजों की मौत हुई है। भोपाल में जहां हर सातवें मरीज की मौत हो रही है, तो इंदौर में हर तीसरे की।


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