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ट्रांसजेंडर को प्रकृति ने आम व्यक्ति जैसा ही नहीं बनाया है, समाज एलियन क्यों समझता है

भोपाल। मिंटो हॉल के मुख्य हॉल में थर्ड जेंडर के कवियों का रचना पाठ हुआ। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से समाज के अन्तद्र्वन्द और दोहरे रवैए को व्यक्त किया। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित चित्रा मुद्गल ने की। 'हमारा समय और हमारा जीवन संघर्ष' विषय पर चंडीगढ़ विश्वविद्यालय की पहली ट्रांसजेंडर स्टूडेंट्स धनंजय चौहान ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि हम आपके जैसे ही हैं, एलियंस नहीं। प्रकृति में भी विविधता है, यहां कोई भी एक-दूसरे के जैसा नहीं है। मुझे 5 साल की उम्र में एहसास हुआ कि मैं लड़का नही हूं। स्कूल में भी मेरा हरेसमेंट हुआ।

 

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निया कहती रही कि तुम मर्द हो और आत्मा कहती तुम औरत हो

उन्होंने कहा कि 14 साल की उम्र से ही डिप्रेशन में रहने लगी। अपने शरीर से नफरत होने लगी और सुसाइड करने की कोशिश भी की लेकिन बच गई। फिर मैंने आगे पढ़ाई करने का निश्चय किया। लड़के के रुप में ही ग्रेजुएशन किया। इस दरमियान आत्मा जीती रही और मैं मरती रही। मुझे तरह-तरह की यातनाएं झेलनी पड़ी लेकिन मैंने हार नहीं मानी, मैं क्या बताऊं कि मेरे साथ क्या-क्या हुआ, 20 लड़कों ने रातभर मुझे एक कमरे में बंद कर दुष्कर्म किया। दुनिया कहती रही कि तुम मर्द हो और आत्मा कहती तुम औरत हो। मैं पढ़ाई में अच्छी थी मैंने ग्रेजुएशन में टॉप किया।

1993 में एमए हिस्ट्री में एडमिशन लिया, रेगिंग हुई तो कॉलेज छोड़ दिया। फिर लॉ कॉलेज में एडमिशन लिया लेकिन वहां रेप की कोशिश हुई तो छोड़ दिया और तय किया कि एक दिन इसी विश्वविद्यालय में शिखंडी बनकर आऊगी। भले यूनिवर्सिटी के दरवाजे हमारे लिए बंद थे लेकिन प्रकृति की यूनिवर्सिटी खुली हुई थी जहां की शिक्षा अंदर ही अंदर कह रही थी कि तुम्हें हार नहीं मानना हैं।

मुझे पढऩा पसंद है, किताबें मुझे अच्छे से जानती है, किताबें मेरी जान है, इसलिए मैंने भाषाएं, संगीत और नृत्य सीखा और विद्या से जुड़ी रही। मैं चाहती हूं किन्नर भीख मांगना छोड़ें, पढ़ाई करे और सामान्य जिंदगी जिएं। गौरतलब है कि धनंजय चौहान को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने दिल्ली में रात्रि भोज के लिए आमंत्रित किया गया था। अक्टूबर में कनाडा में वल्र्ड ट्रांसजेंडर सब्मिट में उन्हें आमंत्रित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट में उन्हीं की अर्जी पर थर्ड जेंडर को लेकर सरकार को पॉलिसी बनानी पड़ी। आज उन्हीं की लड़ाई की बदौलत पंजाब विश्वविद्यालय में 5 ट्रांसजेंटर नि:शुल्क पढ़ाई कर रहे हैं।

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मैं हूं शक्ति, मैं हूं एक नारी...

इस मौके पर उन्होंने न तू मर्द न तू औरत, तू तो है एक पवित्र आत्मा, जो तुझको समझेगा वहीं तो होगा सच्चा महात्मा, मैं बोली मैं तो हूं एक अबला, शरीर मेरा मर्द का है लेकिन अंदर से हैं एक महिला... रचना पढ़ी। वहीं, आलिया एसके ने मैं हूं शक्ति, मैं हूं एक नारी... कविता का पाठ किया। वहीं, किन्नर कवि देवज्योति भट्टाचार्य ने सवाल यह नहीं कि मैं कौन हूं, सवाल यह है कि मैं क्या बनना चाहती हूं, बाकी सवाल तो यह है कि मैं क्या बन कर आई हूं, ऐसे सारे सवाल लोग मुझसे पूछते हैं, पर हर सवाल के जवाब लोग खुद ही सोचते हैं... रचना सुनाई।

इसके बाद शंभूनाथ चौधरी ने तूफान शीर्षक से बहुत डर लगता है, तूफान अगर फिर से लौट आए, बंद दरवाजे में दस्तक देकर, बोलें दोस्त फिर से लौट आएं, एक दिन अचानक आकर, वो सब कुछ छीनकर ले गए... रचना पढ़ी। देश की पहली ट्रांसजेंडर प्राचार्य मानबी बंदोपाध्याय ने मैं क्या खुद एक कविता हूं, मेरा जीवन तो एक कठिन सा गद्य, कविता एक नारी, गद्य एक पुरुष.. रचना पढ़ते हुए कहा कि हम अर्धनारीश्वर हैं।

मैं हर दिन नौकरी छोडऩा चाहती हूं

देश की पहली थर्ड जेंडर प्राचार्य मानबी ने कहा कि मैं पढऩा चाहती थी, लेकिन परिवार साथ न था। 1984 में बड़ी मुश्किल से ग्रेजुएशन कर नौकरी हासिल की। प्राचार्य बनी तो पुरुष स्टाफ को लगता था कि मैं एक किन्नर की बात कैसे मानूं। मैं इतना परेशान किया जाता कि मैंने जिस भी कॉलेज में प्रिंसिपल का दायित्व संभाला, कुछ ही दिनों बाद मुझे तबादला मांगना पड़ा। मुझे कहा जाता कि तुम जाकर भीख मांगों, सेक्स वर्कर का काम करो, प्रिंसिपल की जिम्मेदारी संभालने का तुम्हारा हक नहीं है। आज एक ऐसी जगह मेरी पोस्टिंग है, जहां तक पहुंचना भी मुश्किल होता है। मैं कई बार वीआरएस मांग चुकी हूं, लेकिन नहीं मिला। आज तक देश में कई बड़े विद्वानों-समाज सुधारकों ने आंदोलन चलाया लेकिन थर्ड जेंडर की सूध किसी ने नहीं ली। अगली कड़ी में विपल्ब घोष और रिंटू दास ने महाभार की अंबा पर तैयार विशेष नृत्य की प्रस्तुति दी।



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