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भाजपा में हर जिले में अध्यक्ष की कुर्सी के दावेदारों की कतार

भोपाल/ भाजपा में जिला अध्यक्ष चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। 30 नवंबर को सभी जिलों में जिला अध्यक्ष और प्रदेश समित के सदस्य के लिए चुनाव होना है। 50 साल की उम्र का क्राइटेरिया रख देने से मौजूदा अध्यक्षों में से 75 फीसदी का बाहर होना तय माना जा रहा है।

ऐसे में नए दावेदारों ने जोर आजमाइश शुरू कर दी है। हर जिले में अध्यक्ष पद के लिए पांच से लेकर दस तक दावेदार हैं। ऐसे में संगठन को आम सहमति बनाने में अभी से पसीना आने लगा है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश ङ्क्षसह इस मामले में संभागीय संगठन मंत्रियों और प्रदेश के बड़े नेताओं के साथ पहले दौर की चर्चा कर चुके हैं। लेकिन अभी भी कई जिलों में दावेदारों की संख्या कम नहीं हुई है।

 

भाजपा प्रदेश संगठन चाहता है कि किसी भी जिले में चुनाव की नौबत न आए और निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया जाए। लेकिन हर जिले में दावेदारों की कतार सामने आ जाने से मुश्किल बढ़ गई है। भाजपा ने जिला निर्वाचन पदाधिकारी के साथ ही पर्यवेक्षको को भेजकर वहां समन्वय बनाने के लिए कहा है। इसके साथ ही हर जिले के सांसद, विधायकों और बड़े नेताओं से चर्चा करने को भी कहा है।

क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन बनाने की होगी कोशिश-

पार्टी प्रदेश के हर अंचल में जिला अध्यक्षों के जरिए जातिगत संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। उसने हर अंचल के जातिगत समीकरण और उसके दावेदारों की सूची तैयार की है। उधर बड़े नेताओं के करीबी भी अपने नाम को लेकर सक्रिय हैं। ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पंसद भोपाल, विदिशा, रायसेन, राजगढ़ और सीहोर जिले में चल सकती है।

वहीं प्रदेश अध्यक्ष राकेश ङ्क्षसह की पसंद को जबलपुर, नरसिंहपुर, कटनी, मंडला, डिंडोरी, सिवनी, दमोह में तवज्जो मिलने की उम्मीद है। दमोह और नरसिंहपुर में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के करीबी भी अध्यक्ष की कुर्सी के लिए सक्रिय हैं। ग्वालियर, मुरैना, भिंड में नरेंद्र सिंह तोमर तो दतिया में पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा के करीबी को अहमियत मिल सकती है। मंडल चुनाव में हुए विवाद और आपत्ति को देखते हुए संगठन जिला अध्यक्ष चुनाव में निर्वाचन के एक दिन पहले ही आम सहमति बनाने की कोशिश कर रहा है।

 

वर्तमान जिला अध्यक्षों ने किया किनारा

कई जिलों से शिकायत आई है कि उम्रदराज या दो बार पद पर रहे चुके जिला अध्यक्षों ने अब संगठन चुनाव से किनारा कर लिया है। वे बैठक तक से गैर हाजिर हो रहे हैं। उम्र का क्राइटेरिया लागू होने के कारण उन्हें पता चल गया है कि इस बार उनके अध्यक्ष बनने का कोई रास्ता नहीं है। ऐसे में प्रदेश चुनाव पदाधिकारी ने जिला अध्यक्षों से सक्रिय रहे और चुनाव प्रक्रिया में पूरा सहयोग करे।



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