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हमारे गांव में बच्चे साक्षर भले देर से हों, शिक्षित जल्दी होते हैं

भोपाल। टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग के पांचवें दिन शुक्रवार को मिंटो हॉल में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियों का आयोजन हुआ। समारोह में आयोजित 'एक मुलाकात' कार्यक्रम में जाने-माने अभिनेता आशुतोष राणा और सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने मंच पर सवाल-जवाब किए, जिसमें आशुतोष के जीवन से जुड़े अनुभव जानने को मिले। सिद्धार्थ ने पूछा कि आपकी पुस्तक 'मौन मुस्कान की मार' व्यंग्य में क्या खास है?

आशुतोष ने बताया कि इसकी शुरुआत इसलिए हुई, क्योंकि मैं मप्र के गाडरवाड़ा से हूं और यहां ग्रामीण अंचल है, तो यहां बच्चे साक्षर देर से भले ही हों, लेकिन शिक्षित बहुत जल्दी हो जाते हैं। इसमें स्कूल ही पढ़ाने का काम नहीं करता, इसमें गांव भी कहीं न कहीं गुरुमंत्र दे रहा होता है।

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दोस्तों के साथ बिताए पलों से आया किताब लिखने का आइडिया

बचपन की यादों को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि कि जब हम छोटे थे, तो एक दिन स्कूल से मैं और मेरे मित्र चले आ रहे थे। दोस्त मैथिलीशरण गुप्त की कविता चारू चंद की चंचल किरणें, खेल रहीं थी जल थल में... सुना रहे थे। हम लोग मगन होते चले जा रहे थे, इतने में थोड़ी दूर तक जाने के बाद उस घाटी पर एक साइकल आई और उनके दोनों पैरों के बीच में से घुसती हुई चली गई और मित्र सायकिल के अगले पहिया पर और तीनों लोग आम के पेड़ से भिड़ गए। जो साइकिल चला रहे थे,

एक हादसे में उनकी एक आंख चली गई थी। थोड़ी देर के बाद साइकिल चलाने वाला लड़का अपने पिता को लेकर वहां आ गया। उनके पिताजी और गांव में फूर्तिले फूफा के बीच झगड़ा हो गया। इतने में मेरे पिताजी आए, क्योंकि दोनों ही उन्हें बड़ा भाई मानते थे और उन्होंने दोनों को एक-एक झापड़ दिए। वहां पर एक शिक्षा दी कि काने से कनवा कहो, तुरतईं जावै रूठ, अरे हीरे-हीरे पूछ लो कैसे गई थी फूट और यही शिक्षा के साथ में काम करता गया जो पुस्तक के लिखने में भी सहायक हुई।

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अपने सपनों को पूरा करने की जिम्मेदारी लें युवा

आशुतोष राणा ने कहा कि राम, कृष्ण, चंद्रगुप्त, चाणक्य, गांधी, रानी पद्मावती ऐसी चेतनाएं हैं जो केवल आती हैं, यह जाती नहीं हैं। यह विचार के रूप में हमेशा हम सबके अंदर जीवित रहते हैं। उन्होंने अपनी कविता हे भारत के राम जागो मैं तुम्हे जगाने आया हूं... सुनाकर सभी में जोश भर दिया। उन्होंने युवाओं से कहा कि आपके सपने पूरे करने की जिम्मेदारी केवल आपकी ही है।

आप जब अपने लिए सोचते हैं या अपने लिए ख्वाब देखते हैं तो इसे बिल्कुल भी दरिद्रता से ना देखें। आशुतोष ने कहा कि साहित्य में दृष्टि से ज्यादा दृष्टिकोण का महत्व है। मेरी किताब मौन मुस्कान की मार पीटकर पुचकार करने की परिणिति है। उन्होंने कॉलेज के अनुभव भी साझा किए।

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