प्रदेश के सबसे बड़े उपचुनाव में भाजपा को इस कारण मिली जीत, 2020 का सबसे बड़ा सियासी घटनाक्रम - Web India Live

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प्रदेश के सबसे बड़े उपचुनाव में भाजपा को इस कारण मिली जीत, 2020 का सबसे बड़ा सियासी घटनाक्रम

भोपाल. 20 मार्च 2020 को मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार गिर गई और 23 मार्च को रात 9 बजे शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मध्यप्रदेश के सीएम के रूप में शपथ ली। ये घटना साल 2020 की मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी सियासी घटना थी। सत्ता परिवर्तन के पीछे ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया का सबसे अहम रोल था। सिंधिया ने 10 मार्च 2020 को कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया इसके बाद उनके समर्थक 19 विधायकों ने भी कांग्रेस और विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

28 सीटों पर उपचुनाव
मध्यप्रदेश में 19 विधायकों के इस्तीफे के बीच कांग्रेस के 4 और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। इसके कोरोना काल के कारण लॉकडाउन लग गया। मई से प्रदेश में उपचुनाव की अटकलें शुरू हो गई हैं। इस दौरान कांग्रेस के कई विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया जिस कारण से प्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव की तैयारी शुरू हुई।

प्रदेश के सबसे बड़े उपचुनाव में भाजपा को इस कारण मिली जीत, 2020 का सबसे बड़ा सियासी घटनाक्रम

प्रदेश का सबसे बड़ा उपचुनाव
प्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव हुए। ये मध्यप्रदेश के इतिहास में सबसे बड़े उपचुनाव थे। इससे पहले एक साथ प्रदेश की इतनी सीटों पर कभी उपचुनाव नहीं हुए थे। इस उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान के साथ केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। वहीं, कांग्रेस की तरफ से अकेले कमलनाथ ने मोर्चा संभाल रखा था।

जून में भाजपा ने उपचुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर दी। मंत्रिमंडल का विस्तार और राज्यसभा चुनाव के लिए रणनीति के साथ-साथ मध्यप्रदेश में उपचुनाव की तैयारियां भी जोरों पर थी। किस क्षेत्र में किसे कौन सी जिम्मेदारी दी जाए भाजपा लगातार इस बात पर मंथन करती रही। मालवा-अंचल की पांच सीटों की जिम्मेदारी पार्टी के सीनियर लीडर और महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को दी गई।

अंदरूनी कलह किया समाप्त
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद भाजपा ने मध्यप्रदेश में सरकार तो बना ली, लेकिन अब सिंधिया समर्थक नेताओं के कारण पार्टी में विरोध के स्वर फूटने लगे थे। मध्यप्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव होना था। उपचुनाव से पहले पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती सिंधिया खेमे के नेताओं को टिकट देने के बाद पार्टी में गुटबाजी को कम करना था। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने पार्टी के अंदरूनी कलह को समाफ्त किया। इसके लिए भाजपा लगातार रणनीति बनाती रही और सभी नाराज नेताओं को मनाने की कोशिश करती रही और अंतिम में उसे सफलता भी मिली।

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16 सीटों पर सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर थी
ग्वालियर-चंबल अंचल की 16 सीटों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। इस सीट के लिए सिंधिया ने लगातार दौरे किए। वहीं, शिवराज सिंह चौहान भी सिंधिया के साथ लगातार इस क्षेत्र का दौरा करते रहे। यहां उन्होंने कई विकास योजनाओं का शिलान्यास किया इसके साथ ही प्रदेश में भाजपा ने सदस्यता महाअभियान चलाया और सिंधिया समर्थकों को भाजपा की सदस्यता दिलाई।

धमाकेदार जीत
मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने धमाके दार जीत दर्ज की। भाजपा ने 19 सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया। ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के खाते में महज 9 सीटें ही आईं। उपचुनाव में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस ने कर्जमाफी के साथ राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए विधायकों की सौदेबाजी को मुख्य मुद्दा बनाया था, लेकिन जनता को यह पसंद नहीं आया। वहीं, जीत के बाद पीएम मोदी ने प्रदेश की जनता का आभार जताया। उन्होंने कहा कि इन परिणामों के बाद शिवराज जी के नेतृत्व में मध्य प्रदेश की विकास यात्रा अब और तेज गति से बढ़ेगी।



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