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Kisan Andolan 2020: ग्रहों की नजरों में किसान आंदोलन कब होगा खत्म

राजधानी दिल्ली की सीमा पर पिछले कई दिनों से पंजाब, हरियाणा और कुछ चंद अन्य राज्यों के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। ये किसान अध्यादेश के ज़रिए बनाएWhen will the farmer movement end गए तीनों नए कृषि क़ानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

ऐसे में किसानों का आंदोलन दिल्ली और एनसीआर के लोगों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। किसानों द्वारा दिल्ली के बार्डरों पर रास्ता जाम किए जाने से आज हर कोई ये जानने को इच्छुक है कि ये आंदोलन कब खत्म होगा।

ज्योतिष की नजरों में किसान आंदोलन: kisan Andola 2020 in Astrology
ज्योतिष के जानकारों के अनुसार किसान आंदोलन को लेकर जो ग्रहों की स्थिति बन रही है। उसे देखकर लगता है कि ये आंदोलन 20 जनवरी 2021 तक खत्म हो जाना चाहिए। जिसमें दोनों ही पक्ष अपनी अपनी बातों में आ रहे संदेहों को मिटा कर इसका हल निकाल लेंगे।

इसमें जहां कुछ पक्षों पर सरकार किसानों की बातों को मान लेगी, वहीं किसान भी कुछ बदलावों के साथ इन कानूनों पर सहमत हो जाएंगें। वहीं इस दौरान कुछ ग्रह इस आंदोलन को और आगे बढ़ने पर न्यायालय के हस्तक्षेप की ओर भी इशारा कर रहे हैं। जिसकी स्थिति किसानों के लिए परेशानी का कारण बन सकती है, लेकिन ऐसी संभावना कम ही दिख रही है।

ज्योतिष के जानकार पंडित सुनील शर्मा के अनुसार ग्रहों की चाल साफ इशारा कर रही है कि किसान आंदोलन देश के लिए एक बड़ी स्थिति को साफ करेगा। जिसके तहत किसानों के बीच कई गैर किसानों पर भी कार्रवाई के संकेत मिल रहे हैं।

वहीं ये आंदोलन शांति से हल होने पर दोनों पक्ष वीन-वीन की स्थिति में रहेंगे। जबकि इसके कारण विपक्ष को भारी नुकसान होने की संभावना है। इससे पहले इन किसानों ने बीते आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया था, जिसे करीब दो दर्जन विपक्षी राजनीतिक पार्टियों और विभिन्न किसान संगठनों का समर्थन मिला था।

वहीं इस प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच कई राउंड की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। किसान संगठनों के कुछ प्रतिनिधियों से गृहमंत्री अमित शाह की मुलाक़ात से भी कोई रास्ता नहीं निकला।

दिल्ली के बॉर्डर पर दिन रात बैठे किसान तीनों क़ानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं जबकि केंद्र सरकार क़ानून के कुछ विवादास्पद हिस्सों में संशोधन के लिए तैयार है। सरकार यह भी दावा कर रही है कि नए क़ानूनों से किसानों का कोई नुकसान नहीं होगा।वना है।

किसान प्रदर्शन क्यों? Why farmer movement 2020
दरअसल भारत की संसद ने 20 और 22 सितंबर, 2020 को कृषि संबंधी तीन विधेयकों को पारित किया। जिन्हें भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 27 सितंबर को मंजूरी दे दी, इसके बाद ये तीनों क़ानून बन गए। किसान इन क़ानूनों के प्रवाधानों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं।

इन क़ानूनों के ज़रिए मौजूदा एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी) की मंडियों के साथ साथ निजी कंपनियों को भी किसानों के साथ अनुबंधीय खेती, खाद्यान्नों की ख़रीद और भंडारन के अलावा बिक्री करने का अधिकार होगा।

वहीं विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों को इस बात की आशंका है कि सरकार किसानों से गेहूं और धान जैसी फसलों की ख़रीद को कम करते हुए बंद कर सकती है और उन्हें पूरी तरह से बाज़ार के भरोसे रहना होगा।

इसके अलावा किसानों को इस बात की भी आशंका भी है कि इससे निजी कंपनियों को फ़ायदा होगा और न्यूनतम समर्थन मूल्य के ख़त्म होने से किसानों की मुश्किलें बढ़ेंगी।

भले ही तीनों नए क़ानूनों में एपीएमसी मंडियों के बंद करने या एमएसपी सिस्टम को ख़त्म करने की बात शामिल नहीं है, लेकिन किसानों को डर यह है कि इन क़ानूनों के ज़रिए निजी कंपनियों के इस बाज़ार में आने से अंत में यही होना है।

ऐसे में किसान विरोध प्रदर्शन के लिए 26-27 नवंबर को दिल्ली की सीमा तक पहुंच गए, इसके बाद सरकार ने किसान संगठनों से बातचीत शुरू की। इसके बाद पंजाब और हरियाणा के अलावा चंद दूसरे राज्यों के किसान भी विरोध प्रदर्शन में शामिल होने शुरू हुए।

जाने क्या हैं ये तीन नए कृषि क़ानून?
जिन तीन कृषि क़ानूनों का किसान विरोध कर रहे हैं, आइये समझते हैं उन्हें-

1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) कानून-2020

2. कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून-2020

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020

इन क़ानूनों के तहत किसान अपने कृषि उत्पादों की ख़रीद बिक्री एपीएमसी मंडी से अलग खुले बाज़ार में भी कर सकते हैं। किसान इसी मुद्दे पर सबसे ज़्यादा विरोध कर रहे हैं।

किसानों का कहना है कि अगर वे एपएमसी की मंडियों से बाहर बाज़ार दर पर अपना फसल बेचते हैं तो हो सकता है कि उन्हें थोड़े समय तक फ़ायदा हो, लेकिन बाद में एमएसपी की तरह निश्चित दर पर भुगतान की कोई गारंटी नहीं होगी।

वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों को इस बात की भी आशंका है कि इन क़ानूनों के रहते हुए उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाएगा। जबकि सरकार का कहना है कि 'कृषि क़ानून एमएसपी सिस्टम और एपीएमसी मंडियों को प्रभावित नहीं करते हैं'। किसान यह भी पूछ रहे हैं कि एपीएमसी मंडियों के नहीं रहने पर आढ़तियों और कमीशन एजेंटों का क्या होगा?

नए क़ानूनों के तहत अनुबंधीय खेती को मंजूरी दी गई है। यानी अब किसान थोक विक्रेताओं, प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज और प्राइवेट कंपनी से सीधे अनुबंध करके अनाज का उत्पादन कर सकते हैं।

इसमें फसल की क़ीमत पर बात तय करके अनुबंध किया जा सकता है। सरकार का दावा है कि इस प्रावधान से किसानों को पूरा मुनाफ़ा होगा, बिचौलियों को कोई हिस्सा नहीं देना होगा।

लेकिन किसान अनुबंधीय खेती का विरोध कर रहे हैं। इसको लेकर किसानों की दो प्रमुख चिंताएं हैं-

पहली चिंता तो यही है कि क्या ग्रामीण किसान निजी कंपनियों से अपने फसल की उचित क़ीमत के लिए मोलभाव करने की स्थिति में होगा?

और दूसरी चिंता, उन्हें आशंका है कि निजी कंपनियां गुणवत्ता के आधार पर उनके फसल की क़ीमत कम कर सकते हैं, ख़रीद बंद कर सकते हैं।
इससे पहले इन किसानों ने बीते आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया था, जिसे करीब दो दर्जन विपक्षी राजनीतिक पार्टियों और विभिन्न किसान संगठनों का समर्थन मिला था।

वहीं इस प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच कई राउंड की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। किसान संगठनों के कुछ प्रतिनिधियों से गृहमंत्री अमित शाह की मुलाक़ात से भी कोई रास्ता नहीं निकला।

दिल्ली के बॉर्डर पर दिन रात बैठे किसान तीनों क़ानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं जबकि केंद्र सरकार क़ानून के कुछ विवादास्पद हिस्सों में संशोधन के लिए तैयार है।

नए क़ानूनों की मदद से सरकार ने दलहन, तिलहन, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा चुकी है। सरकार का कहना है कि इससे इन उत्पादों के भंडारण पर कोई रोक नहीं होगी, इससे निजी निवेश आएगा और क़ीमतें स्थिर रहेंगी।

दूसरी ओर किसानों का कहना है कि इन प्रावधानों से निजी कंपनियां बड़े पैमाने पर इन उत्पादों का भंडारण करने लगेंगी और अपने फायदे के लिए बाज़ार में इन उत्पादों की आपूर्ति में कृत्रिम कमी पैदा की जाएगी।

किसानों का यह भी कहना है कि जब उन्हें ऐसी कंपनियों की इच्छा के मुताबिक़ उत्पादन करना होगा और उन्हें क़ीमतें भी कम मिलेंगी।

सरकार का दावा किसानों को नुकसान नहीं होगा...
इससे पहले इन किसानों ने बीते आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया था, जिसे करीब दो दर्जन विपक्षी राजनीतिक पार्टियों और विभिन्न किसान संगठनों का समर्थन मिला था।

वहीं इस प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच कई राउंड की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। किसान संगठनों के कुछ प्रतिनिधियों से गृहमंत्री अमित शाह की मुलाक़ात से भी कोई रास्ता नहीं निकला।

दिल्ली के बॉर्डर पर दिन रात बैठे किसान तीनों क़ानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं जबकि केंद्र सरकार क़ानून के कुछ विवादास्पद हिस्सों में संशोधन के लिए तैयार है। सरकार यह भी दावा कर रही है कि नए क़ानूनों से किसानों का कोई नुकसान नहीं होगा।



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