अलग विंध्य प्रदेश के मुद्दे ने जोर पकड़ा, एक और भाजपा विधायक मैदान में कूदे
भोपाल। मध्यप्रदेश में विंध्य को अलग राज्य बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। पहले मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने इसके लिए एक बड़ा आंदोलन छेड़ने का ऐलान किया, इसके बाद एक और भाजपा विधायक ने अलग विंध्य प्रदेश बनाने की मांग का समर्थन कर दिया। इसके बाद मध्यप्रदेश में सियासत तेज होती नजर आ रही है।
विंध्य क्षेत्र के ही गुढ़ से विधायक नागेंद्र सिंह ने कहा है कि जिस तरह से विंध्य क्षेत्र की उपेक्षा हो रही है, उसे देखते हुए पृथक राज्य बनना चाहिए। नागेंद्र सिंह ने कहा कि नारायण त्रिपाठी की मांग उचित है, लेकिन उन्हें पहले पार्टी फोरम में यह बात रखनी चाहिए।
27 जनवरी को चुरहट में करेंगे बड़ा आंदोलन
इससे पहले मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी लाइन से हटकर विंध्य प्रदेश बनाने की मांग को हवा दे दी थी। इसके बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उन्हें बुलाकर कुछ नसीहत दी, लेकिन उसके बावजूद उन्होंने 17 जनवरी से विंध्य को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन छेड़ने का ऐलान कर दिया। यह आंदोलन विंध्य के चुरहट से शुरू किया जाएगा।
समर्थन जुटाने में जुटे हैं त्रिपाठी
गौरतलब है कि कुछ दिनों से समर्थन जुटाने में लगे हैं। हाल ही में उन्होंने सतना जिले के उचेहरा में भी सभा की थी और तब उन्होंने ये तक कहा था कि पार्टी छोड़ हर व्यक्ति प्रमोशन चाहता है। हम सपा में थे, कांग्रेस में गए, प्रमोशन मिला। कांग्रेस से भाजपा में आए प्रमोशन मिला। उन्होंने तब कहा था कि हम नया प्रदेश बनाने को नहीं बोल रहे हैं, हम चाहते हैं कि हमारा पुराना विंध्य प्रदेश ही वापस किया जाए।
पहले भी उठती रही है अलग विंध्य की मांग
1 नवंबर 1956 में मध्यप्रदेश का गठन हुआ था, इसके बाद विंध्य को अलग प्रदेश बनाए जाने की मांग उठने लगी थी। विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी भी अलग प्रदेश बनाए जाने के पक्षधर थे। तिवारी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर विधानसभा में एक राजनीतिक प्रस्ताव भी रखा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र को मिलाकर अलग विंध्य प्रदेश बनाया जाना चाहिए। हालांकि इस मुद्दे पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई और बात आई-गई हो गई। लेकिन विधानसभा में प्रस्ताव आने के बाद कभी-कभी यह मांग दोबारा उठती रही। कई बार छोटे-मोटे आंदोलन भी हुए। खासबात यह है कि सन 2000 में केंद्र की एनडीए सरकार ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड प्रदेश बनाने के गठन को स्वीकृति दी थी। उस समय भी श्रीनिवास तिवारी के पुत्र दिवंगत सुंदरलाल तिवारी ने एक बार फिर मुद्दा गर्मा दिया था। उस समय एनडीए सरकार को एक पत्र लिखा था। मध्यप्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा से एक संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, लेकिन तब केंद्र ने इसे खारिज कर केवल छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना को हर झंडी दे दी थी।
कहां तक फैला है विंध्य क्षेत्र
मध्यप्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया और शहडोल जिले विंध्य क्षेत्र में ही आते हैं, जबकि कटनी जिले का कुछ हिस्सा भी इसी में माना जाता है।
ऐसा था विंध्य प्रदेश
- -मध्यप्रदेश के गठन से पहले विंध्य अलग प्रदेश था।
- -विंध्य प्रदेश की राजधानी रीवा थी।
- -आजादी के बाद सेंट्रल इंडिया एजेंसी ने पूर्वी भाग की रियासतों को मिलाकर 1948 में विंध्य प्रदेश बनाया था।
- -विंध्य क्षेत्र पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास का पठारी भाग माना जाता है।
- -विंध्य प्रदेश में 1952 में पहली बार विधानसभा का गठन भी हुआ था।
- -विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित शंभुनाथ शुक्ला थे, जो शहडोल के रहने वाले थे।
- -वर्तमान में जिस इमारत में रीवा नगर निगम है, वो विधानसभा हुआ करती थी।
- -विंध्य प्रदेश करीब चार साल तक अस्तित्व में रहा।
- -1 नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश के गठन के साथ ही यह मध्यप्रदेश में मिल गया था।
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