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चुनाव बारिश के मौसम में ही होना चाहिए

टिप्पणी
पंकज श्रीवास्तव

शीर्षक पढ़कर आप सोचेंगे कि हम यहां चुनाव की बात कर रहे हैं। और बारिश में चुनाव हो ऐसा क्यों भला? ऐसे किसी मौसम का चुनावों से कोई संबंध होता है? लेकिन चुनाव आयोग यदि जनता के हित में और खास तौर पर ग्रामीण जनता के हित में कुछ कर सकता है तो उसे बारिश के मौसम में ही चुनाव करवाने चाहिए।
कारण बहुत सीधा सरल है। आज भी प्रदेश के असंख्य गांव ऐसे हैं जहां सुविधाएं नहीं पहुंच सकतीं। पहुंचें कैसे सड़क ही नहीं है। विकास कैसे हो।

इसी बारिश में मध्यप्रदेश के दसियों ऐसे चित्र सामने आ चुके जब चारपाई पर कभी मरीज, तो कभी प्रसूता, तो कभी कांधों पर अर्थी लिए ग्रामीणों को कीचड़ से सने रास्तों से गुजरते हुए हमने देखा। विवशता भी ऐसे दृश्यों पर आंसू बहाती है। वातानुकूलित दफतरों में बैठे अफसरों व नेताओं के लिए ये बेहद सामान्य दृश्य हो सकते हैं लेकिन जो परिवार ऐसे हालात से गुजरता है वो सारी जिंदगी इसे भुला नहीं पाता। जब कोई बेटा आशंकित हो बीमार वृदध पिता को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना चाहता हो या जब कोई पति अपनी ब्याहता को प्रसूती के लिए ले जाना चाहता हो और एंबूलेंस उनके दरवाजे तक भी नहीं पहुंच सकती...सोचिए क्या गुजरती होगी उन पर। किसी की अर्थी को कीचड़ भरे रास्ते से ले जाना। कितना कष्टदायक है।

पर इस सब का चुनाव से क्या संबंध! संबंध ये है कि जब ऐसे ही कीचड़ भरे रास्तों से हमारे नेतागण या सो कॉल्ड जनप्रतिनिधि जनता के दरवाजे पर वोटों की गुजारिश के लिए जाएंगे तो हकीकत इनके पैरों में चिपककर इनके निवास तक पहुंचेगी। जब ये कीचड़ से सनी अपनी पादुकाएं धोएंगे तो इन्हें ग्रामीणों की परेशानी समझ आएगी। तब ये समझ पाएंगे कि वो हजारों करोड़ आखिर गए कहां जो ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क का जाल बिछा देने के लिए काफी थे। भ्रष्टाचार की कौन सी दीमक उन्हें खा गई। बारिश में जब नेताजी देखेंगे कि कैसे टपकती छतों के नीचे ग्रामीण अपना जीवन बिताते हैं तब उन्हें समझ आएगा कि कल्याण की योजनाओं को पलीता आखिर कहां और कौन लगा रहा है। बारिश हमारे देश में मौसम कम और बहाना जाता होता है। तीन चार महीने इसी बहाने को भुनाया जाता है। बारिश है अभी काम नहीं हो सकता। जब चुनाव ही बारिश में होंगे तब शायद इस मौसम को इन बहानों से निजात मिले। तो चुनाव आयोग से करबदध निवेदन है कि चुनाव बारिश में करवाएं और नेताजी पैदल यात्रा कर घर-घर जाएं। संभवत: राहत की कुछ बूंदें ग्रामीणों के नसीब में आएं।



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