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मध्यप्रदेश पहला राज्य जहां झाड़-फूंकवालों की मदद से होगा इलाज

भोपाल@श्याम सिंह तोमर
आज के दौर में बढ़ती आपाधापी ने लोगों को मानसिक बीमारियों की आग में झोंक दिया है। नतीजा- हर पांचवां व्यक्ति किसी न किसी मानसिक समस्या से घिर हुआ है। लोगों में एंजायटी, मेनिया, सीजोफ्रेनिया से लेकर साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन वे इलाज कराने से बच रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी बाधा है लांक्षण का डर, जो उन्हें इलाज के बदले फेथ हीलर्स यानी बाबा, ओझा, तांत्रिक और झाडफ़ूंक करने वालों की शरण में पहुंचा देते हैं।

वहां उनकी समस्या और गंभीर हो जाती है और वे सालों-साल बीमारी से उबर नहीं पाते हैं। इसी को ध्यान में रखकर सरकारी अस्पतालों के मनोचिकित्सक फेथ हीलर्स के पास पहुंचकर ऐसे रोगियों की तलाश कर रहे हैं। मप्र पहला राज्य है, जिसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) फेथ हीलर्स के नाम-पते और संपर्क नंबर के साथ केस स्टडी का डाटा भी मेंटेन कर रहा है।

मानसिक रोग और इलाज के बीच है फासला
देशभर में हर पांचवां व्यक्ति किसी ने किसी मानसिक रोग का शिकार है, लेकिन इलाज सिर्फ पांच फीसदी लोगों को ही मिल पा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार इसका मुख्य कारण लोगों में जानकारी का अभाव तो दूसरा उपचार सुविधाओं की पहुंच सीमिति होना है।

100 से अधिक फेथ हीलर्स से संपर्क
एनएचएम के उप-संचालक डॉ. शरद तिवारी बताते हैं कि करीब दो साल में 100 से अधिक बाबाओं से संपर्क किया जा चुका है। उनके जरिए मनोरोगियों का इलाज भी किया गया है।

जागरुकता के कार्यक्रम भी
एनएचएम की ओर से स्कूल, कॉलेज, ओल्ड एज होम, जेल सहित अन्य जगहों पर जागरुकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसी तरह मानसिक स्वास्थ्य संवाद कार्यक्रम 'मन कक्ष' और तीसरा 'पेथ हीलर्स' के जरिए दुआ और दवा एक साथ चलाने पर फोकस किया जा रहा है। इसको लेकर ग्वालियर और इंदौर में 'टेली मानस' सेल स्थापित की है। हेल्प लाइन नंबर 14416 और 18008914416 पर भी परामर्श लिया जा सकता है।

मददगार साबित हो रहे झाड़-फूंक करने वालों से बैर नहीं...
प्रदेश के हर जिला अस्पताल में एक पद मनोचिकित्सक का स्वीकृत है, लेकिन साइकेट्रिस्ट आधे में ही हैं। ऐसे में मानसिक रोगियों तक पहुंचना और उनका इलाज सरकार के लिए चुनौती है। इसी को देखते हुए फेथ हीलर्स के नेटवर्क का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके लिए मनोचिकित्सकों को काउंसिलिंग दी गई। उन्हें बताया गया कि बाबाओं और फकीरों के कामकाज से उन्हें कोई समस्या नहीं है। बाबा और फकीर अपना काम करते रहें, लेकिन डॉक्टरों की मदद भी करें।

केस-1
सीजोफ्रेनिया के शिकार युवक पर बता दिया आसमानी साया
भोपाल निवासी एक युवक सीजोफ्रेनिया से ग्रसित हो गया। इसके चलते वह चुपचाप और अकेला रहने लगा। बीच-बीच में आक्रामक भी हो जाता था। तब परिजन किसी की सलाह पर उसे रतलाम ले गए। वहां बाबाओं ने उसे जंजीरों में जकड़ दिया। इससे वह और एग्रेसिव हो गया। इसके बाद साइकेट्रिस्ट ने इलाज शुस किया तो सुधार होने लगा।

केस-2
मन से देने लगे नींद की गोलियां
रीवा की 22 वर्षीय युवती को अचानक नींद नहीं आने की समस्या, स्वभाव में चिड़चिड़ापन और ज्यादा बात करने की समस्या हो गई। पिता ने खुद ही मेडिकल स्टोर्स से लेकर नींद की दवा दे दी। इससे लड़की और उग्र हो गई। फिर उसे झाड़-फूंक वाले की शरण में ले जाया गया। वहां पर बाबा ने काला जादू बताते हुए चिमटे से दागा और बाल खींचे। मामला बिगड़ा तो परिजन डॉक्टर की शरण में आए। यहां उसे मेनिया की समस्या बताई गई। यह डिप्रेशन से ठीक उलट समस्या है। अब वह धीरे-धीरे ठीक हो रही है।

भारत में कुष्ठ, टीबी जैसे रोगों को आज भी लोग अभिशाप मानते हैं। इसी प्रकार पीलिया, टायफाइट, डॉग बाइट जैसी समस्या के लिए झाड़-फूंक को मुख्य उपचार मानते हैं। जबकि इस सबके फेर में बीमारी के उपचार में देरी होती है और इलाज भी कारगर नहीं होता।
- डॉ. धीरेंद्र मिश्रा, एसो. प्रोफेसर, मनोचिकित्सा विभाग, संजय गांधी स्मारक चिकित्सालय रीवा



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