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अब होम्योपैथी पद्धति से इलाज कराना कर रहे पसंद, कोरोना के बाद बढ़े मरीज

भोपाल। कोरोना काल में आयुर्वेद के साथ होम्योपैथी पद्धति से इलाज करवाने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई। लोगों का भरोसा इस पैथी पर इतना बढ़ा कि बीमार होने पर वे इसी पैथी से इलाज कराना पसंद करते हैं। प्रदेश में 213 औषधालयों, 5 आयुष विंग और एक मेडिकल कॉलेज के माध्यम से मरीजों को इलाज उपलब्ध कराया जा रहा है। कोराना से पहले जहां सालाना 20 से 25 लाख मरीज आते थे, अब इनकी संख्या 35 से 40 लाख तक हो गई है। इधर, इस पैथी में लगातार शोध हुए के चलते मरीजों को बेहतर उपचार मिल पा रहा है। होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति कई लाइलाज बीमारियों या सामान्य बीमारियों में सबसे कारगर पैथी साबित हो रही है।

कोविड में 300 पेशेंट पर किया रिसर्च
डॉ. जूही गुप्ता ने बताया कि मैंने कोविड के दौरान चिरायू अस्पताल में 300 पेशेंट को होम्योपैथी दवाइयां देकर रिसर्च की। ये मरीज 2 दिन पहले डिस्चार्ज हुए, इनका बुखार तेजी से कम हुआ और लक्षण भी तेजी से घटे। 6 माह तक ये रिसर्च चली। इस रिसर्च को इंटरनेशनल जर्नल एल्सवियर ने पब्लिश भी किया। अब हम एम्स भोपाल, केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद के साथ मिलकर त्वचा रोग सोरायसिस के उपचार पर रिसर्च कर रहे हैं। इस रोग को सिर्फ होम्योपैथी के जरिए ही जड़ से मिटाया जा सकता है। अब ये बीमारी युवाओं को भी होने लगी है। डेढ़ साल से स्टडी चल रही है। अब तक 135 मरीजों की स्क्रीनिंग कर उन्हें ठीक कर चुके हैं। इसमें बिना स्टेराइड या कैमिकल वाली दवाई दिए उपचार किया जा रहा है।

सिकलसेल से मिल रही राहत
डॉ. निशांत नंबिसन ने बताया कि मैं 2018 से बैगा और भारिया जनजातियों में होने वाली सिकलसेल बीमारी पर रिसर्च कर रहा हूं। इसमें 25 हजार लोगों की स्क्रीनिंग कर 1660 मरीजों की पहचान की गई। इस बीमारी के कारण उचित इलाज न मिलने से मरीजों की मौत होने की संभावना ज्यादा होती है। अंग्रेजी दवाओं के साइड इफेक्ट होने से वे बीच में ही दवाइयां छोड़ देते हैं, इससे शरीर ओर कमजोर हो जाता है। पपीते से बनी दवाई से सिकलसेल में रक्त कोशिकाएं सामान्य होने लगती है।



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