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आज शनि हो जाएंगे अस्त, जानिये इसका असर

न्याय के देवता शनिदेव का ज्योतिष में खास महत्व है। ऐसे में इनका कोई भी परिवर्तन देश दुनिया सहित व्यक्ति के जीवन पर विशेष असर डालता है। इसी कारण इनकी किसी भी चाल पर ज्योतिष की विशेष नजर रहती है।

इन्हीं सब के बीच इसी साल यानि 2020 की 27 दिसम्बर यानि आज शनि अस्त हो रहे हैं, ऐसे में ज्योतिष के जानकारों का मानना है कि इससे शनि के प्रभाव में कुछ कमी आ जाएगी।

ज्योतिष के जानकार पंडित सुनील शर्मा के अनुसार शनि के गोचर की अवधि सबसे अधिक होती है। क्योंकि यह ग्रह लगभग ढाई वर्ष में राशि परिवर्तन करता है इसलिए इन 30 महीनों की अवधि में शनि एक राशि में स्थित रहने के दौरान वह वक्री गति भी करता है और पुनः मार्गी हो जाता है।

शनि की वक्री अवस्था को सामान्यतः शुभ नहीं माना जाता है। शनि के गोचर का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कहा जा रहा है कि शनि के अस्त होने से देश दुनिया में परिवर्तन होंगे।

शनि ग्रह अस्त का फल...
वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत शनि सबसे मंद गति से चलने वाला ग्रह है और एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहता है। इसलिए शनि ग्रह का अस्त होना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि शनि ग्रह शीत हवाओं का कारक है और जब जब भी शनि ग्रह अस्त होता है, तो प्रकृति में बड़े बड़े बदलाव आते हैं और साथ ही साथ शासन-प्रशासन की स्थिति में भी बदलाव आने की पूरी संभावना होती है।

इसका कारण ये है कि शनि एक न्याय प्रिय और कर्म प्रधान ग्रह है, इसलिए विशेष रूप से नौकरी करने वाले जातकों के लिए उनकी कुंडली में शनि ग्रह का बली होना अति आवश्यक है।

जिनकी कुंडली में शनि अस्त अवस्था में होता है उन्हें नौकरी के क्षेत्र में अधिक परेशानी महसूस होती है। इसके अतिरिक्त सेवा के क्षेत्र में और न्याय से संबंधित क्षेत्र में शनि का अस्त होना अनुकूल परिणाम नहीं देता।

जब शनि ग्रह अस्त होता है तो इसे शनि का अस्त होना, शनि तारा डूबना, शनि का लोप होना कहा जाता है। यदि शनि आपका मुख्य ग्रह है और अस्त हो गया है, तो ऐसी स्थिति में आपको अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

शनि एक कर्म प्रधान ग्रह है पर जब भी है अस्त होता है तो इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है। इसलिए शनि तारा डूबना अथवा शनि का लोप होना ज्योतिषीय दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

क्योंकि ऐसी स्थिति में आपको अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, विशेष रूप से आपके स्वास्थ्य और कर्म को प्रभावित करने में इसका विशेष प्रभाव पड़ सकता है।

शनि ग्रह हमारे जीवन में आशा को जीवित रखता है और जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यकता अनुसार मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए कुंडली में शनि ग्रह का अस्त होना अनुकूल नहीं माना जाता।

शनि ग्रह यदि कुंडली के लिए अनुकूल फल देने वाला ग्रह है तो उसको आवश्यकतानुसार बल देने के लिए नीलम रत्न धारण करना चाहिए। इसके विपरीत यदि शनि कुंडली विशेष के लिए अशुभ फल देने वाला ग्रह बना है तो ऐसी स्थिति में शनि के बीज मंत्र “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से शनि की स्थिति मजबूत होगी और दुष्प्रभाव कम होंगे।

शनि के अस्त होने का : कोरोना पर असर...
कोरोना वायरस पूरी दुनिया के लिए घोर विपदा के रूप में 2019 के अंत में सामने आया। कई ज्योतिषियों का मानना था कि यह शनि, राहु और केतु के परिवर्तन के कारण ऐसा हुआ था। ज्योतिष के जानकारों के अनुसार, कोविड-19 की शुरुआत, इसके फैलने की रफ्तार और इसके थमने का वक्त, सब कुछ ग्रहों की चाल और विभिन्न राशियों में उनके भ्रमण पर निर्भर है।

इस लिहाज से ज्योतिषियों के अनुसार भारत समेत पूरे विश्व में अब कोरोना वायरस के प्रकोप के अंत की शुरुआत शनि के अस्त होने से हो सकती है। इससे पहले कर्म के आधार पर न्याय के स्वामी शनि वर्ष 2019 में धनु राशि थे। इस दौरान 30 अप्रैल को शनि वक्री होकर 18 सितंबर को धनु राशि में पुनः मार्गी हो गए। 2020 में धनु राशि से अपनी स्वराशि मकर में 24 जनवरी को प्रवेश किया।

इसी वर्ष 11 मई 2020 से 29 सितम्बर 2020 तक शनि ने मकर राशि में वक्री अवस्था में गोचर किया। अब इसी वर्ष शनि आज यानि 27 दिसम्बर 2020 को अस्त भी हो जाएंगे, जिससे शनि के प्रभाव कुछ कम हो जाएंगे हैं।

जानकारों के अनुसार वर्तमान में विक्रम संवत 2076-77 से प्रमादी नाम का संवत्सर प्रारंभ हुआ है। इसके पहले परिधावी नाम का संवत्सर चल रहा था। प्रमादी से जनता में आलस्य व प्रमाद की वृद्धि होगी।

नारद संहिता का दावा ये किया जा रहा है : दावा किया जा रहा है कि 10 हजार वर्ष पूर्व लिखी नारद संहिता में पहले ही कोरोना महामारी के फैलने और इसके खात्मा की भविष्यवाणी की गई है। दावा करने वाले इसके लिए एक श्लोक का उदारहण देते हैं...

भूपावहो महारोगो मध्यस्यार्धवृष्ट य:।
दु:खिनो जंत्व: सर्वे वत्सरे परिधाविनी।

अर्थात परिधावी नामक सम्वत्सर में राजाओं में परस्पर युद्ध होगा महामारी फैलेगी। बारिश असामान्य होगी और सभी प्राणी महामारी को लेकर दुखी होंगे।



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