संत हिरदाराम ऑडिटोरियम में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मनोवैज्ञानिक डाॅ. नीलकंठन द्वारा एक विशेष सत्र का आयोजन
संत हिरदाराम नगर। संत हिरदाराम गर्ल्स काॅलेज के वातानुकूल आॅडिटोरियम में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मनोवैज्ञानिक डाॅ. नीलकंठन द्वारा एक विशेष सत्र का आयोजन किया। संत हिरदाराम आॅडिटोरियम में एक प्रेरित सत्र Modern Age Parenting : Challenges Solutions आयोजत किया गया। यह सत्र कक्षा सातवी से लेकर नवमीं तक के पालकों हेतु आयोजित किया गया। इसमें नवनिध हासोमल लखानी पब्लिक स्कूल एवं मिठ्ठी गोबिंदराम पब्लिक स्कूल के कक्षा 7वी से 9वी तक के अभिभावकगण ने भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती, माँ भारती एवं संत षिरोमणि हिरदाराम साहिब जी के छायाचित्रों के समक्ष दीप-प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण कर किया गया। सर्वप्रथम संत हिरदाराम गर्ल्स काॅलेज की प्राचार्या चरणजीत कौर ने स्वागत उद्बोधन में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मनोवैज्ञानिक डाॅ. नीलकंठन का परिचय दिया। तत्पश्चात् शहीद हेमू कालानी एजुकेषनल सोसायटी के प्रेरणापुंज श्रद्धेय सिद्ध भाऊ, उपाध्यक्ष हीरो ज्ञानचंदानी, संस्था सचिव एसी साधवानी, संतजी की शिष्या संगीता रायचंदानी, शिक्षाविद् विष्णु गेहानी, कार्यकर्ता एवं शिक्षकगणों ने अपनी उपस्थिति से इस सत्र की शोभा बढ़ाई।
इस विशेष सत्र को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मनोवैज्ञानिक एंव अभिप्रेरक डाॅ. एस.नीलकंठन में आॅडियो, वीडियो व गतिविधियों के माध्यम से संबोधित किया। डाॅ. नीलकंठन ने पालकों को उनकी बाधाओं, समस्याओं और उसके हल को अत्यंत रूचिकर ढंग से प्रस्तुत किया। आपने बताया कि वर्तमान पीढ़ी में बदलाव आना जरूरी है ताकि लोगों की सोच बदल जाए। परिवार में माँ को इतना अधिक प्यार मिले कि परंपरा से चली आ रही लोगो की धारणा बदल जाए कि बच्चे की परवरिश में माँ तकलीफ उठाती है आपने बताया कि माँ सरस्वती की आराधना करें, अपनी सोच को सकारात्मक बनाएँ, माँ प्रकृति के संदेशों पर ध्यान दें, सदैव ईश्वर एवं माता-पिता के प्रति कृतज्ञता का भाव रखें, सभी के प्रति मधुर संबंध को बनाए रखे एवं स्वयं पर विश्वास रखें। आपने बताया कि जीवन के छः आयामों शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, भावात्मक में संतुलन आवश्यक है अन्यथा संतुलन के अभाव में ये सभी डगमगा जाते है। किसी भी चीज को चिरस्थाई रखने के लिए उसका उचित रखरखाव आवश्यक है।
आपने अभिभावकों व छात्राओं से अपील की कि आधुनिक परिवेश में समाज में बदलाव लाने हेतु पहले स्वयं में बदलाव लाना जरूरी है। नई सोच बनाएँ ताकि समाज का नवनिर्माण हो सके। घर के वातावरण को तनाव रहित रखें, दिन की शुरूआत शांति एवं प्रार्थना के साथ करें। आपने पालकों को प्रेरित करते हुए कहा कि वे अपने बालकों को पढ़ा-लिखाकर इतनी क्षमता विकसित करें कि बालक-बालिका न केवल आत्मनिर्भर बने अपितु जीवन में आने वाली समस्याओं और चुनौतियों का धैर्य के साथ सामना कर सकें।
आपने पालकों से कहा कि वे बच्चों के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करें बच्चों को सही रास्ता दिखाएँ, उनके सामने वैसा ही व्यवहार करें जैसा व्यवहार आप अपने साथ चाहते है। माता-पिता अपने बच्चों के प्रेरणास्त्रोत होते हैं। बच्चंे अपने माता-पिता से वर्ताव-व्यवहार करने की सीख ग्रहण करते है, वे उन्हीं की आदतों का अनुसरण करते है। घर पर अच्छी भाषा का प्रयोग करें, शिकायती प्रवृत्ति का त्याग करें तथा मोबाइल से दूर रहें। रोज रात्रि में अच्छे विचार लिखें तथा प्रातः अच्छे आदर्श वाक्य पढ़ें। आपने परवरिश के बेसिक नियमों की जानकारी देते हुए बताया कि परिवार के अंदर कानून एवं व्यवस्था होनी चाहिए। सही दिशा निर्देश हों तथा बच्चों को अपनी चिंताओं से दूर रखें। इस अवसर पर आपने छात्र जीवन पर दबाव एवं उस दबाव से मुक्त रहने के रोचक तरीके भी सुझाए। आपने बताया कि छात्र जीवन का विकास शिक्षक, माता-पिता एवं समाज के सहयोग से ही संभव है माता-पिता अपनी जिम्मेदारियों को समझें और बच्चों की मनोस्थिति के अनुकूल उनके साथ आचरण करें। बच्चों के साथ भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखें ताकि परिवार में प्रसन्नता का वातावरण स्थाई हो सके।
इस अवसर पर श्रद्धेय सिद्ध भाऊजी ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मनोवैज्ञानिक एंव अभिप्रेरक डाॅ. एस.नीलकंठन की हृदय से प्रशंसा की एवं संस्था में समय-समय पर बालक-बालिकाओं को दिए जाने वाले दिशा-निर्देशों की चर्चा की। आपने बताया कि हमारे यहाँ बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जाती है और यथोचित संस्कार भी दिए जाते हैं। माता-पिता एवं गुरूजनों की प्रेरणाओं को आत्मसात करने की सीख प्रदान की जाती है। आपने बताया कि हमारी शिक्षण सस्थाओं में विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखकर यथासमय शैक्षणिक सुविधाएँ भी प्रदान की जाती हैं।
कार्यक्रम का सफल संचालन प्रमिता दुबे परमार द्वारा किया गया।
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