सपने में भी सदा उनको तिरंगा पास लगता है...

भोपाल। अखिल भारतीय साहित्य परिषद ने 'नई कलम' शृंखला का चौथा आयोजन शुक्रवार को स्वराज भवन में आयोजित किया। इसमें चित्रांशी खरे, कुमार चंदन और पुनीत दुबे ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भेल के पूर्व महाप्रबंधक विजय जोशी थे। उन्होंने कहा कि रचनाओं को सुनना एक तीरथ के समान है। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्याम बिहारी सक्सेना ने की। उन्होंने कहा की नई पीढ़ी की उत्कृष्ट सोच को दर्शाती है।
इस अवसर पर चंदन ने सृजन जो हो गया हमसे हमारा आवरण होगा... पेश की। इसके बाद लुटा सब कुछ बनाते है यहां परिवेश खुशियों का, सपने में भी सदा उनको तिरंगा पास लगता है... सुनाई। वहीं, जलते रस्तों के ऊपर मैं शीत लिए फिरता हूं, कुछ खट्टे कुछ मीठे अपने गीत लिए फिरता हूं, इंद्रधनुष के रंगों सा हम खिलने आएंगे, बिन पेंदी के लोटे जैसे लुड़क रहे हो क्यों, कभी डाल पे कभी पात पे फुदक रहे हो क्यों, वीरों ने पहना दिया, भारत के सिर मौर... रचनाएं पढ़ी।
इसके बाद चित्रांश ने बहुत दिन से किनारा कर रहे हैं, बिछडऩे का इरादा कर रहे है, सुना है आजकल कमजफऱ् जुगनू, जियादा ही उजाला कर रहे है, जब तेरे अक्स ने ख्वाबों में मचलना सीखा, दिल ने रह रह के उसी दिन से धड़कना सीखा... पेश की। चित्रांश ने अपनी रचनाओं को विस्तार देते हुए जुदा तो हो गए लेकिन कहानी याद आएगी, वो रातों के हसीं मंजऱ जवानी याद आएगी... पेश की।
इसी क्रम में पुनीत दुबे ने किरदार धूप छाव जिंदगी उलझने भरमार है, जीवन हर मोड़ एक नया किरदार है... और पाया या खो दिया व्यर्थ ये विचार है, चलते रहना पथिक धर्म की गुहार है... पेश की। वहीं, अंत में तोतला है इश्क़ और हवस हो गई बातूनी, ये बोलना भूला, और न उसको सुनाई देता, रह गये अरमान सब कैद दिल के दिल में कुछ कहा हमने, था कुछ उनको सुनाई देता... से प्रस्तुति को विराम दिया।
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