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कॉर्बन कॉपी को कोई पसंद नहीं करता, फेल होने का डर मन से निकाल दें


भोपाल। उस्ताद जाकिर हुसैन शनिवार सुबह ध्रुपद केंद्र संस्थान में उस्ताद जाकिर हुसैन साधारणी निवास का उद्घाटन करने पहुंचे। उन्होंने कहा कि संगीत की दुनिया में सब शिष्य पर निर्भर करता है। जो ज्ञान आपके गुरु के भीतर है वह बहती नदी के समान है और शिष्य पर निर्भर करता है कि उसमें से एक कप भरते हो एक बाल्टी भरते हो या एक ट्रक लोड करते हो। यह कभी मत सोचो कि मैं यहां बैठा हूं और मेरे गुरु आज मुझे कुछ नया सिखाएंगे बल्कि हमें उस सही क्षण का इंतजार करना चाहिए जब गुरु आपको कुछ नया सिखाने के लिए प्रेरित होता है जब गुरु को आपके अंदर कुछ नया करने की प्रतिभा दिखाई देती है।
उस वक्त आप और आपके गुरु समान वेवलेंथ में होते हैं। जब आप कुछ ऐसा करते हैं जो आपके गुरु के दिमाग में उनके दिल में प्लग करता है तब ज्ञान की गंगा आपके लिए बहती है इसलिए ऐसा कुछ पाने की कोशिश कीजिए। एक बार पटना में में अपने पिता के साथ प्रोग्राम में शामिल होने के लिए गया। एक व्यक्ति मेरे पिताजी के पास आए और बोले आज आपने कमाल कर दिया और आपका बेटा वह तो बिल्कुल आप के जैसा ही बजाता है।
मेरे पिताजी अचानक से बोले अरे मैं उम्मीद करता हूं कि वह ऐसा नहीं करें और तब उस आदमी ने कहा ऐसा क्यों तो बोले क्योंकि जो मैं कर रहा हूं वह तो हो चुका है और अगर मेरा बेटा बिल्कुल मेरे जैसा करता है तो वो कार्बन कॉपी होगा और कार्बन कॉपी को डस्टबिन में डाल दिया जाता है। उसे हार्ड कॉपी बनना होगा मैं उम्मीद करता हूं जो मैं सिखा रहा हूं वह उसके बाहर भी सीखे और नए प्रकाश से सराबोर हो जैसे सामान भाषा बोलने का अलग अंदाज।
मैं भी रोज फेल होता हूं
उन्होंने कहा कि फेल होने का डर मन से निकाल दें। मैं अपने हर कंसर्ट में नया प्रयोग करता हूं। फेल हो जाता हूं तो लोग कहते हैं उस्ताद, आज तो आप चूक गए। लेकिन फिर भी हर बार ऐसा करता हूं। जब तक नया नहीं करोगे। सीख नहीं पाओगे। कॉर्बन कॉपी को कोई पसंद नहीं करता। नया करने से ही आप पहचान बना पाओगे। मैं आज अभी अपने आप को महान नहीं समझता हूं। रोज मेरे लिए कुछ नया होता है और कुछ नया सीखता हूं। मेरे हिसाब से पहला स्टूडेंट गुरु ही होता है। एक बात का ध्यन भी जरूर रखना चाहिए कि गुरु हमेशा आपको नहीं सिखाएगा लेकिन स्टूडेंट भी उस नॉलेज को निचोड़ कर अपने लिए रखेगा।
गुरु भी उसे ही सीखाता है जो कुछ अलग करता है। उन्होंने एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि मैंने अपने शुरुआती दिनों में जब तबला बजाना शुरू किया था तो एक अलग कमरे में प्रैक्टिस करता था। दूसरे कमरे में मेरे पिता अल्लाह रक्खां खां भी रियाज कर रहे होते थे। मेरे पिताजी का कोई रिएक्शन मुझे नहीं मिलता कि मैं कैसा बजा रहा हूं। उनका पहला रिएक्शन तब मिला जब मैंने कुछ अलग बजाया। उन्होंने मुझे नोटिस किया और बताया कि क्या सही है और क्या गलत।


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