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एक शिफ्ट में डायलिसिस होने से मरीजों की मुसीबत, बढ़ रही वेटिंग

भोपाल. जेपी अस्पताल में डायलिसिस के लिए मरीजों की लंबी वेटिंग चल रही है, क्योंकि 14 डायलिसिस मशीनों में से सिर्फ आठ में ही काम चल रहा है। इनसे भी मात्र एक शिफ्ट में डायलिसिस की जाती है। यह स्थिति तब है जब अस्पताल में टेक्निकल स्टाफ और नर्सिंग स्टाफ की कमी नहीं है। डायलिसस के जरूरी दवाएं और पानी की बेहतर व्यवस्था है। एक शिफ्ट होने के कारण डायलिसिस के मरीजों निजी अस्पतालों में जाकर इलाज कराना पड़ रहा है।

सूत्रों ने बताया कि अस्पताल में पहले हर दिन 25 से 30 मरीजों की डायलिसिस की जा रही थी। पिछले साल अप्रैल से जुलाई के बीच चार मशीनें खराब हो गईं। अब आठ से 6 से8 मरीजों की डायलिसिस हो रही है। सूत्रों के मुताबिक पहले से डायलिसिस करा रहे मरीजों की ही डायलिसिस हो पा रही है। नए मरीजों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ रहा है। बता दें कि जेपी अस्पताल में 2011 से डायलिसिस की सुविधा शुरू हुई थी। तब यह प्रदेश का पहला जिला अस्पताल था। दो मशीनें एचआईवी और हैपेटाइटिस के मरीजों के लिए रिजर्व हैं, लेकिन मशीनें खराब होने से इन मरीजों की डायलिसिस में भी मुश्किल हो रही है।

दो हजार रुपए तक आता है खर्च
डॉक्टरों ने बताया कि किडनी के मरीजों को हफ्ते में कम से कम दो बार डायलिसिस कराना पड़ती है। निजी अस्पताल में एक बार डायलिसिस कराने का खर्च करीब दो हजार रुपए है। जेपी अस्पताल में बीपीएल मरीजों की डायलिसिस नि:शुल्क की जाती है। जबकि अन्य मरीजों को डायलिसिस के लिए सिर्फ सामान खरीदकर लाना पड़ता है।

आसानी से दो शिफ्ट में हो सकती है डायलिसस
जानकारी के मुताबिक एक डायलिसिस में तीन से चार घंटे का समय लगता है। सुबह आठ बजे से डायलिसिस शुरू कर सुबह 11 बजे तक खत्म हो जाती है। इसके बाद मशीन को साफ करने में आधा घंटा लगता है। अगर लंच के बाद दोपहर एक बजे से डायलिसिस करें तो शाम चार बजे तक दूसरी शिफ्ट भी पूरी हो सकती है। इससे मरीजों को लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।



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