इकबाल और टैगोर एक ही हैं, दोनों धर्म-मजहब का अलगाव नहीं मानते थे

भोपाल। मिंटो हॉल में चल रहे विश्व रंग में पांचवें दिन शुक्रवार को कार्यक्रम की शुरुआत 'टैगोर, फैज और इकबाल' विषय पर व्याख्यान से हुईं। इसमें वक्ताओं ने भारतीय साहित्य को सही दिशा देने में इन विभूतियों के योगदान को स्पष्ट किया। वरिष्ठ साहित्यकार इंद्रनाथ चौधरी ने कहा कि जीवन में वही शायर याद रह जाता है जो दिलों की धड़कन को पकड़ता है। टैगोर का मानना था कि प्रेम सबसे बड़ा स्वर्ग सुख है।
फैज की शायरी आज भी रोशन अलाव की तरह है जो कि आज भी हम सभी से सवाल पूछती हैं। रचनाकार मृदुला गर्ग ने कहा कि इकबाल और टैगोर को एक ही हैं क्योंकि दोनों धर्म-मजहब का अलगाव नहीं मानते थे। आलोचक डॉ. धनंजय वर्मा ने बताया कि टैगोर मानते थे कि हमारा आश्रय मानवता है और हमें अतीत के आतंक से मुक्त स्वत्रंतता की अवधारणा के प्रतीक प्रस्तुत करना है। फैज के बारे में बताते हुए कहा कि वे पूरी एक कौम हैं।
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भारत के लोग विलक्षण प्रतिभा के धनी
'21वीं सदी में विश्व साहित्य' पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने विश्व साहित्य की पूर्व अवधारणाओं से परिचित कराते हुए वर्तमान में उसमें आए बदलाव से सभी को रू-ब-रू कराया। फिलीपींस से आईं साहित्यकार लेबो माशीले ने कहा कि भारत के पास विलक्षण प्रतिभा के धनी लोग हैं, इसलिए यहां का साहित्य इतना समृद्ध है। आजकल के युवा लेखक सहित्य लिखने के तरीके को नया आकार दे रहे हैं, जिसके बारे में हम कभी सोच भी नहीं सकते थे। डिजिटल मीडिया के जरिए अब भाषा की सीमाएं खत्म हो गई हैं।
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सदी के सिर्फ दो दशक साहित्य के परिचायक नहीं हो सकते
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रभु जोशी ने कहा कि सदी के सिर्फ दो दशक साहित्य के परिचायक नहीं हो सकते। हम पश्चिम का स्वप्न देखने लगे हैं, हमारी विचारधारा पश्चिम के जैसे ही हो गई है। हम जो देख रहे हैं और जो दिखाया जा रहा है, वह दोनों अलग हैं उनमें बहुत ज्यादा फर्क है।
वरिष्ठ साहित्यकार विजय शर्मा ने अपने कहा कि साहित्य एक सतत प्रक्रिया है और हम साहित्य की विरासत को कभी नकार नहीं सकते। इस सदी के साहित्य में दलित साहित्य, स्त्री साहित्य, समलैंगिक साहित्य की मुखर आवाज सुनाई पड़ती है, जो इस विश्व साहित्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इस मौके पर लेखिका और आलोचक किरण सिंह को वनमाली विशिष्ट युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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