स्थापना दिवसः टाइगर स्टेट के बाद 'लेपर्ड स्टेट' भी बन सकता है मध्यप्रदेश - Web India Live

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स्थापना दिवसः टाइगर स्टेट के बाद 'लेपर्ड स्टेट' भी बन सकता है मध्यप्रदेश

 

भोपाल। देश में टाइगर स्टेट के साथ ही मध्यप्रदेश लेपर्ड स्टेट ( leopard state ) भी बन सकता है। प्रदेश में इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। पिछली गणना के आधार पर यही अनुमान लगाया गया है। मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस के मौके पर patrika.com की एक रिपोर्ट...।

मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट ( tiger state ) के नाम से दुनियाभर में जाना जाता है। इसके साथ ही प्रदेश में सबसे ज्यादा एलिगेटर (घड़ियाल) की संख्या में सबसे अधिक होने के कारण यह घड़ियाल स्टेट भी हो गया है। इसी के साथ ही मध्यप्रदेश में जिस तेजी से तेंदुओं की संख्या बढ़ी है, उससे जल्द ही मध्यप्रदेश लेपर्ड स्टेट बन सकता है।

मध्यप्रदेश के जंगलों से तेंदुए के जो आंकड़े सामने आए हैं वे काफी उत्साहवर्धक बताए जा रहे हैं। पिछली बार की गणना में तेंदुए अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे अधिक पाए गए। 2014 में हुई गणना के मुताबिक देश में सबसे अधिक तेंदुए मध्य प्रदेश में पाए गए थे। उस समय 1817 तेंदुए मिले थे। वन विभाग का भी अनुमान है कि अब इनकी संख्या बढ़कर 2200 से ज्यादा हो चुकी है। इसी आंकलन को आधार मानकर अनुमान लगाया जा रहा है कि मध्यप्रदेश में तेंदुए की तादाद लगातार बढ़ रही है।

 

2200 के पार पहुंची संख्या

2014 की गणना के अनुसार तो मध्यप्रदेश को तेंदुआ स्टेट का दर्जा मिल जाना चाहिए। गणना के समय कर्नाटक दूसरे नंबर पर था। मध्य प्रदेश में 1817 तेंदुए पाए गए थे तो कर्नाटक में इनकी संख्या 1129 थी। वन विभाग कहता है कि मध्य प्रदेश में तेंदुए बढ़कर 2200 हो सकते हैं। दूसरे नंबर पर कर्नाटक में कितने भी तेंदुए बढ़े होंगे, उनकी तादाद मध्यप्रदेश से अधिक नहीं हो सकती। यही कारण है कि मध्यप्रदेश इसमें भी नंबर वन हो जाएगा इसकी उम्मीद है।

 

526 बाघ हैं यहां

2006 में सर्वाधिक 300 बाघों के साथ यह टॉप पर था, लेकिन 2010 व 2014 की गणना में कर्नाटक और उत्तराखंड से पिछड़कर तीसरे पायदान पर पहुंच गया था। मध्यप्रदेश को पिछले साल फिर 526 बाघों के साथ टाइगर स्टेट का दर्जा मिला हुआ है।

 

घड़ियाल स्टेट मध्यप्रदेश

प्रदेश में सबसे अधिक घड़ियाल चंबल नदी में है। यहां के आंकड़ों से अन्य राज्यों की तुलना की गई तो यहसर्वाधिक निकले। अकेले चंबल नदी में ही 1255 घड़ियाल मिले ते। वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। इसके अफसरों का कहना है कि टाइगर के संरक्षण के बाद अब जलीय जीव संरक्षण और संवर्धन के मामले में भी मध्यप्रदेश को बड़ी सफलता मिली है। बताया जाता है कि चार दशक पहले घड़ियालों की संख्या खत्म होने की स्थिति में थी। तब दुनियाभर में केवल 200 घड़ियाल ही बचे थे। इनमें से पूरे भारत में 96 और चंबल नदी में 46 घड़ियाल ही थे।

 

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फारेस्ट की मेहनत काम आई

चंबल नदी में इन घड़ियालों को बचाने के लिए मुरैना जिले में चंबल नदी के 435 किलोमीटर क्षेत्रफल को चंबल घड़ियाल अभयारण्य घोषित कर दिया गया था। यह अभयारण्य उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश से लगा हुआ है। यह भी बताया जाता है कि दुनियाभर में भारत, नेपाल और बांग्लादेश ही ऐसे देश हैं, जहां घड़ियाल बचे हैं। घड़ियाल स्वच्छ और गहरे पानी में ही अपना ठिकाना बनाते है और कुनबा बढ़ाते हैं। फारेस्ट ने भी अपने स्तर पर काफी प्रयास किए जिससे इनकी संख्या बढ़ाई जा सके।

 

12 दुर्लभ प्रजाति के पंछी भी

इधर, कुनो राष्ट्रीय उद्यान में कराए गए सर्वेक्षण में भी पंछियों की नई प्रजातियों का पता चला है। इनकी संख्या 174 है। इनमें से 12 दुर्लभ प्रजाति के हैं। इनमें एल्पाइन स्विफ्ट, यलो लेग्ड बटनक्लेव, इंडियन स्पाटेड क्रीपर, साइबेरियन रूबीथ्रोट, ब्ल्यू केप्ड रॉक थ्रश, ग्रे बुशचट और व्हाइट केप्ड बंटिंग प्रमुख हैं। देश में भी इन पंछियों की प्रजातियां बमुश्किल ही मिलती हैं। लगभग 60 लोगों की 22 टीमों ने 44 सर्वे रूट पर पंछियों का सर्वे किया।



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