महाशिवरात्रिः इस बार यहां जरूर चढ़ाएं शिवजी को त्रिशूल, बन जाएंगे बिगड़े काम

भोपाल। मध्यप्रदेश में सतपुड़ा के ऊंचे पहाड़ पर विराजे हैं भोलेनाथ। इस स्थान पर लाखों त्रिशूल नजर आते हैं। बारह माह श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। पचमढ़ी में साल में दो बड़े मेले लगते महाशिवरात्रि पर चौरागढ़ मंदिर और नागपंचमी पर नागद्वारी गुफा में विराजे भोले शंकर के दर्शन पूजन के लिए लाखो श्रद्धालु उपस्थिति दर्ज कराते है। भोले के भक्त एक क्विंटल तक वजनी त्रिशूल को अपने कांधे पर लेकर चौरागढ़ मंदिर तक पहुंच जाते हैं।
patrika.com महाशिवरात्रि 2019 के मौके पर जानिए पचमढ़ी के इस शिवालय के बारे में जो है तो 4200 मीटर की ऊंचाई पर, लेकिन श्रद्धालु कभी नहीं आपको बता रहा है ऐसा शिवालय जहां भोले को त्रिशूल चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और मनोकामना भी पूरी कर देते हैं..
शिवजी है बहनोई, पार्वती है बहन और गणेश हैं भांजे
-माता पार्वती ने महाराष्ट्र में एक बार मैना गौंडनी का रूप धारण किया था। इस वजह से महाराष्ट्र के वाशिंदे माता को बहन और भोलेशंकर को बहनोई और भगवान गणेश को भांजा मानते हैं।
-माता पार्वती ने महाराष्ट्र में एक बार मैना गौंडनी का रूप धारण किया था। इस वजह से महाराष्ट्र के वाशिंदे माता को बहन और भोलेशंकर को बहनोई और भगवान गणेश को भांजा मानते हैं।
-एक किवदंती यह भी प्रचलित है कि भस्मासुर से बचने भोले शंकर ने चौरागढ़ की पहाडिय़ों में शरण ली थी।
इसलिए चढ़ता है यहां त्रिशूल
मान्यता है कि चौरा बाबा ने कई वर्षों तक इस ऊंचे पहाड़ पर तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि बाबा के नाम से यहां भोले जाने जाएंगे। तभी से पहाड़ी की चोटी का नाम बाबा के नाम पर चौरागढ़ रखा गया। इस दौरान भोलेनाथ अपना त्रिशूल चौरागढ़ में छोड़ गए थे। उस समय से यहां त्रिशुल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।
मान्यता है कि चौरा बाबा ने कई वर्षों तक इस ऊंचे पहाड़ पर तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि बाबा के नाम से यहां भोले जाने जाएंगे। तभी से पहाड़ी की चोटी का नाम बाबा के नाम पर चौरागढ़ रखा गया। इस दौरान भोलेनाथ अपना त्रिशूल चौरागढ़ में छोड़ गए थे। उस समय से यहां त्रिशुल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।
साल भर चढ़ाए जाते हैं त्रिशूल
चौरागढ़ महादेव में त्रिशूल लेकर जाने वाले भक्तो के अनुसार भोले शंकर से मन्नत मांगने के बाद उनके नाम का त्रिशूल घर ले जाते है। उसके बाद साल भर त्रिशूल का पूजन करते है। महाशिवरात्रि पर त्रिशूल कांधे पर रखकर पैदल भोले शंकर के दरबार पहुंच कर त्रिशूल अर्पित कर देते है। उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और सभी मुराद पूरी कर देते हैं।
चौरागढ़ महादेव में त्रिशूल लेकर जाने वाले भक्तो के अनुसार भोले शंकर से मन्नत मांगने के बाद उनके नाम का त्रिशूल घर ले जाते है। उसके बाद साल भर त्रिशूल का पूजन करते है। महाशिवरात्रि पर त्रिशूल कांधे पर रखकर पैदल भोले शंकर के दरबार पहुंच कर त्रिशूल अर्पित कर देते है। उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और सभी मुराद पूरी कर देते हैं।
पचमढ़ी में हर साल महाशिवरात्रि के मेले के दौरान मेला लगता है। इस मौके पर छिंदवाड़ा, बैतूल, पांडुरना और महाराष्ट्र की सीमा से लगे गांवों से बड़ी संख्या में लोग पैदल चले आते हैं। वे अपने साथ त्रिशूल भी लाते हैं, जो भोलेनाथ को अर्पित करते हैं। यही कारण है कि अब चौरागढ़ पहाड़ी पर असंख्य त्रिशूल नजर आते हैं।
कितनी दूर है चौरागढ़
भोपाल से यह स्थान 196 किलोमीटर दूर है। पचमढ़ी जाने के पिपरिया से मटकुली के रास्ते 48 किमी की दूरी तय करना पड़ती है। यहां टेढ़े-मेढ़े रास्ते लोगों को रोमांचित करते हैं।
पचमढ़ी पहुंचने के लिए पिपरिया में है रेलवे स्टेशन
चौरागढ़ जाने के लिए पिपरिया में रेलवे स्टेशन है। इसके अलावा निकटतम हवाई अड्डा भोपाल है। पचमढ़ी भोपाल, इंदौर, पिपरिया, नागपुर से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। भोपाल से टैक्सी से भी जाया जा सकता है।
यहां ठहरें
पचमढ़ी में ठहरने के लिए वैसे तो काफी होटल हैं, लेकिन यहां पर्यटकों के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल भी हैं। इसके अलावा कुछ सस्ते होटल भी हैं, जहां ठहरा जा सकता है।
कहां घूमें
पचमढ़ी में घूमने के लिए कई स्पॉट हैं, यहां घूमने के लिए जिप्सी से जाना पड़ता है।
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